गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन महारासा ने फरमाया कि संयम के बिना जीवन बेकार है यानी मर्यादा से रहित जीवन किसी भी काम का नहीं है। जीवन में नियम, मर्यादा और अनुशासन का होना अत्यंत जरूरी है। नियम मर्यादा बंधन नहीं है बल्कि यह तो सुरक्षा कवच है ,कुछ लोगों का सोचना होता है कि हमें नियमो में बंधना नहीं है ।मगर खेत के अंदर अगर बाढ़ नहीं लगाई जाए तो क्या फसल सुरक्षित रह सकती है क्या ?नहीं ,जिस प्रकार कांटो की बाढ़ खेत को सुरक्षा प्रदान करती है ,एक सैनिक जब युद्ध के मैदान में जाता है तो कवच बुलेट प्रूफ जैकेट आदि को ग्रहण करके फिर मैदान में जाता है अगर वह उनके बिना युद्ध में चला जाए तो जीवन को खतरा हो सकता है ।जिस प्रकार बाड़ खेत की रक्षा करती है और कवच एवं जैकेट सैनिक की रक्षा करते हैं उसी प्रकार यह व्रत नियम मर्यादाए व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करते हैं। उसे मुसीबतों से बचाते हैं। इसी के साथ जो संयमवान और मर्यादावान होते हैं वही सबको अच्छे लगते हैं। पवन पावक और पानी भी जब तक अपनी मर्यादा में रहते हैं तब तक वह अच्छे और उपयोगी रहते हैं लेकिन जब यह अपनी मर्यादा तोड़ देते हैं तब आंधी तूफान और दावानल का रूप ले लेते हैं असंयम रूप जीवन जंगल के पक्षी की तरह है जो बिना मर्यादा या सीमा के कहीं भी आ जा सकता है ।मगर सयमी का जीवन समुद्र में चल रहे जहाज पर बैठे पक्षी के समान है जो कहीं भी उड़ कर जाए मगर लौट कर वापस जहाज पर ही आता है। अतः मर्यादित अनुशासित संयमित जीवन को ही वास्तविक जीवन माना गया है। इसी के साथ बिना विवेक के मन का होना बेकार बताया गया है विवेक का होना व्यक्ति के लिए जागृति सजगता या होश का पर्याय है विवेक द्वारा व्यक्ति जानता है कि क्या करने योग्य है ,क्या करने योग्य नहीं है ।विवेक मन को नियंत्रित करने का कार्य भी करता है। जैसे लगाम द्वारा घोड़े को, नकेल से ऊंट को, और अंकुश से हाथी को वश में किया जा सकता है। उसी प्रकार चंचल मन को विवेक के द्वारा वश में किया जा सकता है। सूअर के सामने चावल मिष्ठान आदि रख दिए जाय और दूसरी तरफ विष्ठा,तो भी सुअर उन चावलों और मिष्ठान को छोड़कर विस्टा में ही मुंह डालता है ।उसी प्रकार अविवेकी मनुष्य अच्छी शिक्षा या अच्छे मार्ग को स्वीकार नहीं करता है। मगर विवेकवान व्यक्ति हमेशा हित शिक्षा और सन्मार्ग को ही स्वीकार करेगा ।और मन को साधने का सतत अभ्यास करता रहेगा। इसलिए जैन आगमो में भी सबसे ज्यादा जीवन में विवेक को अपनाने की बात कही है। अगर हम संयम साधना और विवेक मार्ग पर अग्रसर हो पाएंगे तो निश्चित रूप से हमारा मानव जीवन सार्थकता को प्राप्त कर सकेगा ।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया ।
सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया।
पदम चंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*