संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि आप चाहते हैं कि हमारे मनोरथ पूर्ण होवे और हमारे जीवन में सल्लेखना, संथारा आवे ।हम पंडित मरण को प्राप्त करे। इसके लिए पापों को छोड़ना जरूरी है। क्योंकि पापों से हल्की बनी आत्मा ही पंडित मरण कि अधिकारी होती है। प्राणतिपात पाप में आज हम श्वासोच्छवास बलप्राण की हिंसा किस प्रकार से होती है इसे समझने का प्रयास करेंगे ।शरीर में श्वास का लेना श्वास और श्वास का छोड़ना उच्छवास कहलाता है ।जीवन जीने के लिए दोनों ही जरूरी है इसकी शक्ति को कम कर देना या बाधा पहुंचाना श्वासोच्छवास बल प्राण हिंसा कहलाती है ।इसे समझे जैसे किसी जीव को जल में डुबो देना, जिससे उसके नाक व मुंह में पानी चला जाता है, श्वास नहीं ले पाने से उसकी मृत्यु हो जाती है। बहुत बार सर्दी में सिगड़ी जलाकर सो जाने पर सारे दरवाजे और खिड़कियां बंद होने की स्थिति में दम घुटने से मृत्यु तक हो जाती है ।बहुत बार मच्छरों को भगाने के लिए धुवा किया जाता है जिससे उनका दम घुटने लग जाता है ।
पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आजकल बच्चे जिसका जन्मदिन होता है उस पर टेप आदि लपेट देते हैं ,जितने वर्ष की वर्षगांठ मनाई जा रही हो उतने मुक्का मारते हैं ,जिससे श्वास लेने में बाधा और शरीर को हानि पहुंचने की संभावनाएं रहती है। इसलिए बच्चों को इस विषय में जानकारी दी जाना जरूरी है।
बहुत बार गटर आदि की सफाई करते समय व्यक्ति बिना उपकरण आदि के उस में उतर जाते हैं और ऑक्सीजन के अभाव में और जहरीली गैस आदि के कारण दुर्घटना के शिकार भी हो जाते हैं। इसी प्रकार बिना उपकरण आदि के कुएं में उतरना भी दुर्घटना का कारण हो सकता है।
किसी कमरे में 20 व्यक्ति ही बैठ सकते हैं उस कमरे में 50 व्यक्तियों को बैठाना ,कोई बस में 50 व्यक्ति ही बैठते हैं उसमें 100 व्यक्तियों को बैठा देना या किसी पैक कमरे में व्यक्तियों को बंद कर देना यह सब श्वासोच्छवास बल प्राण हिंसा का कारण है ।अतः हम पूर्ण सावधानी रखें कि हमारी थोड़ी सी लापरवाही हमारे या दूसरों के श्वासोस्वास बल प्राण की हिंसा का कारण नहीं बने ।अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो यह जीवन पाप से रहित होने की दिशा में आगे बढ़ सकेगा ।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेडा ने किया।
पदम चंद जैन
* मनीष पाटनी,अजमेर*