*सन्मार्ग उन्मुख आत्मा ही आपकी सच्ची मित्र : प्रियदर्शन मुनि*

संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि सन्मार्ग में जाती हुई आपकी आत्मा आपकी सबसे बड़ी मित्र है ,और इसी के साथ कुमार्ग में जाती हुई आत्मा आपकी सबसे बड़ी शत्रु है। क्योंकि उत्तराध्यन सूत्र में कहा है कि कंठ का छेदन करने वाला शत्रु भी उतना बुरा नहीं करता, जितना बुरा पाप में जाती हुई आत्मा करती है। आपसे मेरा प्रश्न है कि आपको अपनी आत्मा से प्रेम और प्यार है या नहीं? केवल मात्र हाथ पर फ्रेंडशिप बेल्ट बांध देने से मित्रता नहीं हो जाती. जिससे मित्रता होती है, प्रेम होता है, हम उसको जरा भी कष्ट या पीड़ा नहीं होने देना चाहते ,तो फिर आत्मा को पाप में ,दोष में ले जाना यह भी तो आत्मा को कष्ट देना ही है।
आपके मित्र को थोड़ी सी बुखार आ जाए, आपकी नई गाड़ी पर स्क्रेच आ जाए, आपके नए कपड़े कीचड़ के छीटे लगने से खराब हो जाए ,आपका नया बनाया मकान तेज बरसात के कारण चूने लग जाए, तो आपको दुख होता है। क्योंकि आपका उससे लगाव है। इसी तरह का लगाव हमारा अपनी आत्मा के साथ है या नहीं, यह हमें स्वयं को विचार करना है ।मान लीजिए आपके मित्र के यहां शादी का प्रसंग था, आपने अपना सारा काम का छोड़कर तीन दिन तक खड़े रहकर अपनी जिम्मेदारी को निभाया इसी प्रकार अपने घर परिवार की दुकान की समाज आदि की जिम्मेदारियां को अपना समझ कर निभाया, मगर यह आत्मा भी तो आपकी अपनी ही है ।इस जिम्मेदारी को आप कैसे भूल सकते हैं।
अगर आप अपनी जिम्मेदारी समझते हैं तो जितनी पीड़ा नए कपड़ों के गंदा होने पर आपको होती है उससे कई गुना ज्यादा पीड़ा आपको झूठ बोलते समय, चोरी करते समय और जितने भी दोष के पाप के कार्य हैं उनको करते समय होनी चाहिए कि इन कार्यों से मेरी आत्मा गन्दी हो जाएगी।
आपके फेसबुक व्हाट्सएप आदि पर बहुत मित्र है, स्कूल कॉलेज टाइम के मित्र है, व्यापार के मित्र है और जितने भी मित्र हैं सबसे आपका संपर्क है उनके नाम की लिस्ट भी आपके पास मौजूद है, मगर हमारे सबसे निकट जो हमारी आत्मा है ,उससे हमारी अभी तक पूरी मित्रता नहीं हो पाई है ।और इससे सच्ची मित्रता तभी होगी जब हम इसको पापों से हटाकर ,पवित्र निर्मल बना पाएंगे ।यह मित्रता आप को परम शांति समाधि और वितरागता की ओर ले जाएगी। ऐसा प्रयास अगर हमारा हो पाया तो यत्र तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद की स्थितियां निर्मित हो सकेगी।
धर्म सभा को पूज्य श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया।
पदम चंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*

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