*क्षमा विरस्य भूषणम=गुरुदेव प्रियदर्शन मुनि*

संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने संवत्सरी महापर्व पर आयोजित धर्म सभा में श्रद्धालुजनों को संबोधित करते हुए फरमाया कि इस अवसर पर प्रभु से ,भगवान से एक ही अरदास करनी है की है प्रभु हमको मुक्ति की राह दिखला दो ,जन्म मरण से मुक्ति दिला दो ,यह संसार कषाय की आग में जल रहा है। यहां भाई-भाई में झगड़ा,लड़ाइयां एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए हैं। चारों तरफ अज्ञान का अंधेरा छाया हुआ है ।हमे सदज्ञान का प्रकाश दिखला दीजिए।
अंतगड़दशा सूत्र का वर्णन आप सभी ने पर्युषण के आठों दिनों में सुना ,यह भगवान की अनुकंपा का ही माध्यम था ।आचार्य श्री सुधर्मा स्वामी जी ने अपने शिष्य जम्मू स्वामी जी की जिज्ञासा का समाधान करते हुए यह सूत्र प्रदान किया। यह उन महापुरुषों का हम पर अनंत अनंत उपकार है अगर वह हमें मार्ग नहीं दिखाते, तो आज हमारा मार्गदर्शन कौन करता ?
आज संवत्सरी महापर्व है,अन्य पर्वों पर दीपावली आदि पर घर मकान आदि की सफाई की जाती है ।आज आत्मा की सफाई करनी है ।आज अपनी आत्मा के खाते बही को चेक करने का दिवस है। आज से पूर्व के जीवन का आज मरण दिवस है ।अब से नया जीवन शुरू हो जाना चाहिए। हमारा लक्ष्य है मोक्ष को प्राप्त करने का, मगर इसके लिए तीन सूत्रों को हमें जीवन में स्वीकार करना है । सम अर्थात समत्व भाव को जीवन में लाना है ,हमें सहनशीलता को सीखना है, और हमें दम यथार्थ दमन करना है ,अपनी इंद्रियों का ,अपनी विषय वासनाओं का और हमें खम यानी क्षमा याचना के भाव को जीवन में स्वीकार करना है किसी से भी वैर विरोध को जीवन में नहीं रखता है।
पूज्य श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि पर्युषण के दिनों में बहुत भाई बहनों के तपस्या करते देखकर आपके मन में विचार आता है कि मुझे तपस्या क्यों नहीं होती ,तो इसका कारण है कि हमने तपस्या व तपस्वियों की पूर्व में तिरस्कार किया हो, उनकी हंसी मजाक उड़ाई ,उनकी तपस्या में बाधक बने हो या अपनी स्वयं की तपस्या का अभिमान करने से भी उन कर्मों का बंध होता है कि हम तपस्या नहीं कर पाते ।इसी के साथ चाय आदि के नशे के कारण भी तपस्या नही हो पाती। सम्वत्सरी प्रतिक्रमण और आलोचना का दिवस है जिस व्यक्ति का मन बालपन का, भोलेपन का और सयानेपन वाला होता है वही प्रतिक्रमण करने का वास्तविक अधिकारी होता है। हम भी संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के वास्तविक अधिकारी बने। संवत्सरी महापर्व पर जब तक अपने घर से कोई दीक्षित ना हो जाए तब तक एक-एक मिठाई वह फल के त्याग और अपने घर वालों में भाई आदि के खिलाफ संपत्ति आदि को लेकर लड़ाई करने और कोर्ट में जाने के त्याग के प्रत्याखान गुरुदेव श्री के मुखारविंद द्वारा करवाए गए ।गुरुदेव एवं श्री संघ के पदाधिकारी द्वारा आपस में क्षमा याचना की गई ।श्रीमान बलवीर जी पीपाड़ा द्वारा श्री संघ की ओर से जिन-जिन का सहयोग रहा उन सब का धन्यवाद ज्ञापन किया गया। तपस्विनी बहनों एवं तपस्वी भाइयों का सम्मान किया गया। दोपहर में पापों की आलोचना की गई ।अखंड नमस्कार महामंत्र जाप कार्यक्रम, प्रार्थना प्रवचन प्रतिक्रमण संवर एवं पोषध कार्यक्रम में बहुत उत्साह व लगन के साथ काफी संख्या में भाग ले रहे है ।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा एवं हंसराज नाबेड़ा ने किया ।
पदम चंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*

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