गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि जैन दर्शन में 24 तीर्थंकर भगवान का एवं उनकी स्तुति व गुणगान का बड़ा महत्व है ।महापुरुषों का नाम एवं गुण का स्मरण श्रद्धा के साथ करने से उनके गुण हमारे अंदर भी प्रविष्ट होने लगते हैं। इन महापुरुषों ने मिथ्यात्व व अज्ञान से घिरे जनमानस को सत्य की राह दिखाने का अद्भुत कार्य किया। साधु ,साध्वी श्रावक श्राविका रूप चार तीर्थ की स्थापना की ।
24 तीर्थंकर में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव हुए ।इनकी माता मरु देवी व पिता नाभिराजा थे। इनके वृषभ (बैल) का चिन्ह था ।इन्होंने लोगों को असि, मसि और कृषि का ज्ञान कराया। पुरुषों को 72 व स्त्रियों को 64 कलाओं का ज्ञान कराया। संसार से विरक्त होकर इन्होंने संयम जीवन को स्वीकार किया। कठोर तपश्चार्य के बाद केवल्यज्ञान को प्राप्त कर सर्वप्रथम तीर्थ की स्थापना करके धर्म की आदि( शुरुआत )करते हैं धर्म की आदि करने से इन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
आदिनाथ भगवान का जीवन हमें शिक्षा प्रदान करता है कि उन्होंने तो संपूर्ण संसार में धर्म की शुरुआत की ,मगर हम कम से कम अपने जीवन में तो धर्म क्रियाओं को करना शुरू करें ,हमारे जीवन की प्रत्येक क्रियाओं में हम धर्म को जोड़ने का प्रयास करें।
इसी के साथ हमारे संपर्क में जो भी हो उनके जीवन में भी धर्म का प्रवेश हो, ऐसा हम प्रयास करें अगर आदिनाथ भगवान के जीवन से प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन के अंदर धर्म को स्थान दे पानी में सफल हुए तो हमारा यह मनुष्य जीवन को प्राप्त करना सार्थक सिद्ध हो सकेगा ।
आज की धर्म सभा में ब्यावर, विजयनगर, मदनगंज आदि स्थानों से श्रद्धालु जन पधारे।श्रीमती कोमल जी पोखरणा धर्मपत्नी श्रीमान आशीष जी पोखरणा ने 15 उपवास की तपस्या के प्रत्याखान गुरुदेव के मुखारविंद से ग्रहण किया। दैनिक प्रवचन ,चौबीसी गीत सायंकालीन प्रतिक्रमण एवं संवर कार्यक्रम में श्रावक श्राविकाएं उत्साह पूर्वक भाग ले रही है ।
आज की धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा एवं हंसराज नाबेडा ने किया।
पदमचंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*