*श्रावक अदतादान चोरी के पाप से बचे= गुरूदेव श्री प्रियदर्शन मुनि*

संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि श्रावक का लक्ष्य पाप की दुनिया को छोड़कर संयम की दुनिया में प्रवेश करना है। इसके लिए पाप को जानना आवश्यक है तीसरा पाप है अदतादान ,बिना दिए पदार्थ को ग्रहण कर लेना अदतादान है, चोरी का नाम लेते ही हमारे सामने एक फिल्म आती है सेंध लगाने की, ताले आदि तोड़ने की ,मगर चोरी और भी बहुत तरह की होती है ।सामने वाले व्यक्ति को सम्मोहन करके उसको ठग लेना, सेल टैक्स, इनकम टैक्स आदि को जितना भरना चाहिए उतना नहीं भरना। किसी पडी हुई वस्तु को उठाकर उसे अपने अधिकार में ले लेना। जबकि होना तो यह चाहिए की या तो जिसकी है उसे लौटा दी जाए, नहीं तो किसी शुभ कार्य में लगा दिया जाना चाहिए। लेकिन अपने अधिकार में तो नहीं रखना चाहिए। आप सब्जी वाले से फल फ्रूट सब्जी आदि लेने जाते हैं और उसे बिना पूछे सब्जी आदि उठाकर खाने लग जाते हैं यह भी चोरी में आएगा। अगर आप पूछ करके उपयोग में ले रहे हैं तो वह चोरी नहीं कही जाएगी ।आपको सब्जी आदि उठाने में हो सकता है उसका मन तो दुख रहा होगा मगर ग्राहक छूट न जाए इसलिए चुप रहता है ।इसी के साथ परीक्षा आदि में नकल करना ,किसी के लिखे हुए गीत भजन या लेख पर अपना नाम लगाना, धर्म स्थान का या धर्म में दिया हुआ पैसा हड़प लेना ,यह भी चोरी है ।घोषणा करने के बाद भी पैसा नहीं देना,दूसरों की या धार्मिक स्थान या संपत्ति पर अधिकार जमा लेना यह सब चोरी के अनेक रूप है। इन सब चोरी के कर्म को समझ कर ,अगर हम अदतादान नाम के तीसरे पाप से बचने में सफल हो पाए, तो हमारा यह वीतराग वाणी को सुनना सार्थक सिद्ध हो सकेगा।
आज की धर्म सभा में श्रीमती शिल्पा जी खटोड़ ने 11 उपवास ,श्रीमती मंजू कर्णावट विजयनगर वालों ने 8 उपवास एवं श्रीमान संपतराज पोखरना ने 6 उपवास के प्रत्याखान गुरुदेव के मुखारविंद से ग्रहण किए।
धर्म सभा में सरेड़ी विजयनगर सरवाड़ आदि श्री संघों से श्रद्धालु गण दर्शन वंदन एवं प्रवचन श्रवण हेतु पधारे ।
धर्म सभा को पूज्य श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया।
पदमचंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*

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