*माया सदगति का नाश करने वाली गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि*

संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि आप घर, परिवार, संघ व समाज सभी की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। मगर अपनी आत्मा के प्रति भी जो आपकी जिम्मेदारी है इसको पापों से मुक्त करना। यह जिम्मेदारी अपने निभाई या नहीं? याद रखें सब जिम्मेदारी निभाना अधूरा है ही रह जाएगा।
18 पापों में आठवां पाप है माया जो जैसा नहीं है, अपने आप को वैसा दिखाना, यह माया है। आपने बहुरूपियों को देखा होगा वह बहुत सारे रूप बना लेता है, मगर क्या वह उसके वास्तविक रूप है क्या? नहीं, उसका वास्तविक रूप अलग होता है। महात्मा व दुरात्मा की परिभाषा करते हुए कहा है कि जो मन वचन और कर्म से एकरूपता का जीवन जीता हो, वह महात्मा है।लेकिन इसी के विपरीत जो मन वचन और काया कि विभिन्नता का जीवन जीता है, वह दुरात्मा होता है। दो शब्द है कौशल्या और केकेयी।इसको बताया है कि
” जैसा बोलियां वैसा चालिया “वह तो है कौशल्या।
मगर जो केवे कई और करे कई उसे केकेयी कहा है।।
तो आप विचार करें कि मेरा जीवन किसके समान है। 33 बोलो में माया को शबल यानी संयम को बिगाड़ने वाले दोशों में लिया है। 25 क्रिया में माया को संसार बढ़ाने वाली एक क्रिया बतलाया गया है। त्रियंच गति में जाने के कारणों में आया है कि माया करने से व गूड माया करने से व्यक्ति त्रियंच गति में जाता है। माया करने से जीव के स्त्री पर्याय का भी बंध होता है।भगवान मल्लिनाथ का जीव इसका उदाहरण है ।रावण ने माया से साधु का रूप बनाकर सीता जी का अपहरण किया, तो परिणाम आया कि विनाश को प्राप्त करना पड़ा।
धार्मिक परीक्षा देते समय भी अगर आप नकल आदि करते हैं, तो यह सब भी आत्मा को ठगने के ही कार्य है। और विचार करें कि ऐसा कौन सा क्षेत्र है जिस क्षेत्र में अपने माया नहीं की हो घर में दुकान में परिवार में समाज में सब जगह आपने माया का सेवन किया। मगर याद रखें की माया मित्रता का नाश करती है। जिसके साथ भी आपने माया की, वह फिर आप पर विश्वास नहीं करेगा।ध्यान रहे की माया करके आप दूसरों को नुकसान नहीं कर रहे, बल्कि आप अपना स्वयं का ही नुकसान करते हैं। अतः अपने आप को नुकसान से बचने के लिए माया के पाप से बचने का प्रयास करें।अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो यत्र तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा।
आज की धर्म सभा में मसूदा सरवाड़ आदि क्षेत्रों से श्रद्धालुजन दर्शन वंदन एवं प्रवचन हेतु पधारे।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।
पदम चंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*

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