*सुगती पाने के लिए विचारों की पवित्रता आवश्यक: गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि*

संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि प्रभु महावीर जिन्होंने सब प्राणियों को संसार सागर को तिरने का संदेश फरमाया,उन्होंने यह संदेश केवल दूसरों को ही नहीं दिया,बल्कि स्वयं भी इसी पद पर चले हैं। माता के श्रृंगार करते समय फूलों का उपयोग करते समय उन्होंने कहा कि मां फूलों का उपयोग किए बिना भी काम चल सकता है। श्रृंगार के लिए फूलों के जीवों की विराधना करना उचित नहीं है।फूलों के जिवो पर भी भगवान की कितनी करुणा थी। आप भी दीपावली पूजन आदि में सचित फूलों का उपयोग करते हैं।कम से कम इस पाप से तो बचने का प्रयास करें।
वर्धमान के युवा होने पर माता की इच्छा रखने के लिए उन्होंने यशोदा के साथ विवाह किया। कुछ समय बाद उनके एक पुत्री हुई ,जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया। वर्धमान का जीवन गृहस्थ में भी दया और करुणा से ओतप्रोत था।हमें भी उनके जीवन से दया और करुणा के गुणों को ग्रहण करने की आवश्यकता है।
गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि उत्तराध्यन सूत्र के 34 वें अध्ययन में लेश्याओं का वर्णन है। शरीर के वर्ण आदि द्रव्य लेश्या है, और विचार आदि भाव लेश्या है। विचारों के अनुसार हमारा आभामंडल बनता है। महापुरुषों की फोटो के पीछे उनका आभामंडल नजर आता है। मगर हमारा भी आभामंडल होता है,बस वह हमें नजर नहीं आता है। विचारधाराए शुभ अशुभ दोनों होती है। इन्हें यहां लेश्या शब्द दिया गया है। कृष्ण, नील और कापोत यह अशुभ लेश्या है।और तेजो,पदम व शुक्ल यह शुभ लेश्या है। अशुभ लेश्या वाले व्यक्ति के परिणाम अशुभ होते हैं। और शुभ लेश्या वाले व्यक्ति के परिणाम शुभ होते हैं।अतः हमारा अगली गति का आयुष्य का बंध भी हमारे परिणाम पर निर्भर करता है ।अशुभ लेश्याओं के कारण जीव को अशुभ गति में जाना पड़ता है।और शुभ परिणाम के आधार पर जीव को शुभ गति की प्राप्ति होती है।अतः सुगती को पाने के लिए अपने विचारों की पवित्रता का प्रयास करना चाहिए।
35 वे अध्ययन का नाम अनगार अध्ययन है।इसमें बताया गया है कि साधुता के बिना मुक्ति संभव नहीं है। द्रव्य साधुता ग्रहण करने के पश्चात व्यक्ति को भाव साधु में आने का प्रयास करना चाहिए। श्रावक से साधु श्रेष्ठ होता है।क्योंकि साधु पुत्र, परिवार, धन, संपत्ति,आरंभ, समारंभ ,व्यापार आदि क्रियो के पूर्ण त्यागी होते हैं। वे भिक्षा जीवी भी होते हैं। वह रसों में आसक्ति नहीं रखते हैं। मगर श्रावक इन सब क्रियायो से मुक्त नहीं होता है। अतः व्यक्ति का प्रथम प्रयास साधु के जीवन को ग्रहण करने का होना चाहिए। अगर ऐसा प्रयास हो पाया तो सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा। आज की धर्म सभा में महावीर निर्वाण दिवस पर आयोजित त्रिदिवसीय कार्यक्रम में 2550 महाविरास्टक स्त्रोत का जाप कराया गया। कल 2550 महावीर स्तुति (वीर स्तुति)के पाठ का कार्यक्रम रहेगा।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया।
पदमचंद जैन

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