विदिशा । नेशनल एंटीबायोटिक दिवस के अवसर पर इंटीग्रेटेड अकैडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स एवं मेडिकल कॉलेज विदिशा के शिशु विभाग के संयुक्त तत्वावधान में शिशु विभाग के सेमिनार हॉल में विदिशा शाखा अध्यक्ष एवं वरिष्ठ रोग विशेषज्ञ डॉ एम के जैन ने बताया कि एंटीबायोटिक हर मर्ज / हर बीमारी के लिए रामबाण की तरह कारगर नहीं होती, बल्कि हर बीमारी में एंटीबायोटिक के उपयोग से बीमारी के कीटाणुओं में धीरे धीरे प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है और साधारण बीमारियाँ भी विकराल और ख़तरनाक हो कर लाइलाज रूप में सामने आ रही है ।मालूम होने तक बहुत देर हो जाती है और कोई उपचार शेष नहीं बचता । मृत्यु अपने आगोश में समेट लेती है । आज रेसिस्टेंट मलेरिया, टाइफाइड और ट्यूबरक्लोसिस की बीमारी के उदाहरण हमारे सामने मौजूद है । बीमारी रोकने अथवा प्रोफ़ाइलेक्टिक एंटीबायोटिक सिर्फ़ सर्जिकल, डेंटल प्रोसीजर अथवा एंडेमिक बीमारियों की स्थिति में ही दिया जाना चाहिये।
आईएपी की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं मेडिकल कॉलेज शिशु विभाग अध्यक्ष डॉ नीति अग्रवाल ने बताया कि एंटीबायोटिक के लिये थिंक बिफ़ोर -इंक, मतलब एंटीबायोटिक लिखने के पूर्व अच्छे से सोच विचार कर लेना चाहिए कि मरीज को वास्तव में एंटीबायोटिक की ज़रूरत है, तभी एंटीबायोटिक लिखना है अन्यथा नहीं । सामान्य बीमारियों जैसे सर्दी जुकाम, खांसी, सामान्य दस्त, उल्टी, खसरा, छोटी माता, पीलिया, मम्प्स, गलसुये, डेंगू आदि की बीमारियों में एंटीबायोटिक की कोई जरूरत नहीं होती, बल्कि दुष्परिणाम होने की आशंका रहती है उक्त बीमारी समय लेकर सामान्य और लक्षण आधारित उपचार से ही ठीक हो जाती है ।
संगोष्ठी में शिशु विभाग के सीनियर रेसिडेंट डॉ सुरेंद्र द्वारा नेशनल एंटीबायोटिक के उपयोग पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के आवश्यक दिशा निर्देश प्रस्तुत किए। मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष के स्टूडेंट द्वारा एक ज्ञान वर्धक लघु नाटिका द्वारा प्रदर्शित किया गया कि हर बीमारी में एंटीबायोटिक की कोई जरूरत होती ।मेडिकल कॉलेज शिशु विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ प्रियाशा त्रिपाठी ने बताया कि एंटीबायोटिक का उपयोग सिर्फ और सिर्फ सिलेक्टेड मरीजों में ही होना चाहिए । हमारे देश में भी विदेशों की एंटीबायोटिक पालिसी बनना चाहिए, ताकि रजिस्टर्ड चिकित्सक के पर्चे की बिना एंटीबायोटिक की बिक्री ना हो सके । आज हर कोई बिना पर्चे के स्वयं ही कोई भी एंटीबायोटिक खरीद कर मन माने तरीकों से उपयोग कर रहे है और बीमारी के कीटाणुओं को एंटीबायोटिक के विरुद्ध प्रतिरोधकता की और अग्रेषित कर रहे है ।
विदिशा आईएपी सचिव एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ सुरेंद्र सोनकर ने संगोष्ठी में सभी साथी चिकित्सकों आभार मानते हुए बताया कि मरीजों को अच्छे से परीक्षण और आवश्यक जांचो के पश्चात ही पक्के निदान उपरांत ही आवश्यक और सही एंटीबायोटिक दवा का चयन कर सही खुराक और सही दिनों तक देना चाहिए ।