किसी भी जिले में एक ही कलेक्टर होता है, प्रशासन का मुखिया, मगर अनुभव बताता है कि अजमेर में एक ही कलेक्टर नाकाफी है। असल में अजमेर के कलेक्टर पर काम का बोझ इतना अधिक है कि अमूमन वह दायित्वों की कसौटी पर पूरा खरा नहीं उतर पाता। वह अपने पद के साथ न्याय नहीं कर पाता। अजमेर में ख्वाजा साहब के उर्स, मिनी उर्स व पुष्कर मेले के इंतजामात के अतिरिक्त वीआईपी के आगमन पर प्रोटोकोल में हाजिर रहने के कारण कलेक्टर सामान्य विकास कार्यों पर ध्यान देने और ज्वलंत समस्याओं से निपटने पर उतना फोकस नहीं पाता, जितना जरूरी है। इसके अतिरिक्त उस पर अजमेर विकास प्राधिकरण की अतिरिक्त जिम्मेदारी है, मगर काम की अधिकता इतनी अधिक है कि उसे उस ओर पूरा ध्यान देने का समय ही नहीं मिल पाता। बेशक अतिरिक्त जिला कलेक्टर्स उसके सहयोग के लिए तैनात हैं, मगर उनकी स्वतंत्र हैसियत नहीं है। वे अंततः कलेक्टर पर ही निर्भर होते हैं। आप देखिये न, हाल ही पुष्कर मेले में बदइंतजामी होने पर जिला कलेक्टर से मुख्य सचिव ने स्पष्टीकरण मांग लिया। वजह साफ है, काम का बोझ अधिक होने के कारण वे मेले में ग्राउंड लेवल पर सार्थक कमांड नहीं रख पाए। ऐसे में ख्याल आता है कि क्या जिले की सामान्य व्यवस्थाओं के अतिरिक्त जितने भी काम हैं, उसके लिए एक अतिरिक्त कलेक्टर अलग से तैनात किया जाना चाहिए?