*अजयमेरु प्रेस क्लब में “साहित्यधारा” का आयोजन*
*एमडीएस यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति डॉ शर्मा ने क्लब के प्रयासों को सराहा*
अजमेर। अजयमेरु प्रेस क्लब की यह पहल बहुत सराहनीय है जो रचनाकारों को मंच प्रदान करने के लिए “साहित्यधारा” गोष्ठी जैसे नियमित आयोजन को अनवरत जारी रखे हुए हैं। नव-सृजनकर्ता व वरिष्ठ रचनाकार एक मंच पर एक साथ आते हैं, यह बहुत उत्तम बात है। यह बात महर्षि दयानंद विश्विद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ कैलाश चंद्र शर्मा ने कही। वह अजयमेरु प्रेस क्लब की मासिक साहित्य गोष्ठी “साहित्यधारा” की सदारत कर रहे थे। रविवार, 20 अप्रैल को हुए आयोजन में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन नव-सृजनकारों को हौसला देते हैं और आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। इस मौके पर उन्होंने अपनी रचना “करता हूँ बस ये दुआ” सहित अन्य गज़लें भी सुनाईं।
क्लब के पूर्व अध्यक्ष प्रताप सिंह सनकत ने डॉ शर्मा की टिप्पणी को ही उध्दृत करते हुए कहा कि इस नियमित गोष्ठी के संचालन के पीछे क्लब का उद्देश्य भी यही था कि छुपे हुए रचनाकार समाज के सामने लाये जा सकें। उन्हीं के अध्यक्षीय कार्यकाल में 2018 में इसे शुरू किया गया था। खुशी की बात है कि इसकी निरंतरता बनी हुई है। उन्होंने कहा कि हमें उस दिन ज्यादा खुशी मिलेगी, जब किसी बड़े मंच पर साक्षात्कार के दौरान कोई रचनाकार यह कहेगा कि उसकी शुरुआत अजयमेरु प्रेस क्लब की साहित्यधारा से हुई।
इससे पूर्व विभिन्न विधाओं के रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से गोष्ठी को शोभायमान किया। कुलदीप खन्ना ने “किसी से ना बांट दर्द अपना”, रजनीश मैसी ने “खुशी खरीदी जा सकती है उधार नहीं…” सहित अनेक मुक्तक, रमेशचन्द्र भाट ने “फागण आयो रे” गीत, मोहिनी देवी भाट ने “खिले हैं फूल उपवन में”, गीत की प्रस्तुति से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। ग़ज़लकार रामावतार यादव “सहर” ने नज़्म “लिबास उसके हटाना नहीं है आबरुरेज़ी..” के माध्यम से जहां वर्तमान असामाजिक व अमर्यादित घटनाओं पर कटाक्ष किया, वहीं व्यंग्यकार प्रदीप गुप्ता ने “शराफत, चरित्र और संस्कार आजकल दो कौड़ी में बिकते हैं…” पंक्तियों के साथ अपनी व्यंग्य रचना से इंसान के दोहरे चरित्र पर तीखे बाण छोड़े। बनवारीलाल शर्मा ने कविता “परछाई” , अनिता यादव ने भावपूर्ण रचना “हाँ! तुम मेरे पास आ जाओ”, पुष्पा क्षेत्रपाल ने “रोऊँ या हँसूँ”, डॉ स्वर्णकान्ता अरोड़ा ने गद्य रचना “कुम्भ” और ब्यावर से आये चंद्रभान सिंह ने “समय भी क्या चीज है” सुनाकर दाद पाई। गीतकार गौरव दुबे ने अपने चिरपरिचित अंदाज में “मन मिला लो तो सबका हूँ मनमीत मैं” तथा “एक पल को कभी मिल न पाए जिसे” मुक्तकों से अपनी बात शुरू की और फिर बेहतरीन गीत के साथ कार्यक्रम को ऊंचाई दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अमित टण्डन ने अनेक शेर व मुक्तक पढ़े। उनकी ग़ज़ल “मचलता ख्वाब कोई नींद की सिसकियों में था” को खूब सराहना मिली। अंत में श्री सनकत ने आभार व्यक्त किया।