अजमेर: सम्राट पृथ्वीराज चौहान और उनके पूर्वजों का विभिन्न इलाकों में साम्राज्य रहा है. राजा अजय पाल ने अजमेर नगरी की स्थापना की थी. उनके वंशज एवं अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की शौर्य गाथा आज भी गर्व के साथ गाई व दोहराई जाती है. ऐसे महान पराक्रमी सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जयंती अजमेर में मनाई जा रही है. शुक्रवार को सनातन धर्म रक्षा संघ ने चौहान वंश के शासकों के तारागढ़ की पहाड़ी स्थित गढ़ बिठली के मुख्य द्वार पर तिरंगे झंडे के साथ ही सम्राट पृथ्वीराज चौहान के राजवंश का झंडा भी दूसरी बार फहराया. बता दें कि पराक्रमी चौहान वंश के शासकों की महत्वपूर्ण निशानियां में से एक गढ़ बिठली का मुख्य द्वार है.
नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा आयोजन: साध्वी अनादि सरस्वती ने कहा कि यह आयोजन केवल ध्वज फहराने का नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और सांस्कृतिक चेतना के जागरण का प्रतीक है. सम्राट पृथ्वीराज चौहान का बलिदान आज भी हमें सिखाता है कि धर्म और मातृभूमि की रक्षा के लिए संघर्ष ही सच्चा जीवन है. सनातन धर्म रक्षा संघ के अध्यक्ष एवं पूर्व न्यायाधीश अजय शर्मा ने कहा कि आज का दिन हर भारतवासी के लिए गर्व का क्षण है. तारागढ़ पृथ्वीराज चौहान की वीरता का साक्षी रहा है. यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा. कार्यक्रम संयोजक तरुण वर्मा ने कहा कि तारागढ़ विश्व का प्रथम पहाड़ी दुर्ग है, जिसे अंग्रेजों ने जिब्राल्टर से मजबूत किला बताया था. वर्मा ने कहा कि जीर्ण शीर्ण हुए दुर्ग के रखरखाव की आवश्यकता है. साथ ही सम्राट पृथ्वीराज चौहान और कविराज चंद्रवरदाई की विशाल आदमकद प्रतिमाएं तारागढ़ पर लगाने की मांग भी सनातन धर्म रक्षा संघ के माध्यम से की.
52 कोस क्षेत्र से आए चौहान वंशज:शुक्रवार को सम्राट पृथ्वीराज चौहान जयंती के उपलक्ष्य में सनातन धर्म रक्षा संघ के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं ने गढ़ बिठली पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान का झंडा फहराया. इससे पहले सनातन धर्म रक्षा संघ के पदाधिकारी और कार्यकर्ता सम्राट पृथ्वीराज चौहान स्मारक से रैली के रूप में गढ़ बिठली के मुख्य द्वार पहुंचे. इनके साथ संत और पूर्व सैनिक भी थे. यहां सभी ने भारत माता के जयघोष और विजय नाद के साथ सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जयकारे लगाए. इनके अलावा 52 कोस के क्षेत्र से आए चौहान वंशज पारंपरिक राजपूती परिधान में शामिल हुए. साथ में महिलाओं एवं बच्चों ने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया.
गढ़ बिठली के अतीत में वैभव भी है संघर्ष भी: अजमेर को चौहान वंश के राजा अजय पाल ने बसाया था. राजा अजय पाल ने 1113 में तारागढ़ पहाड़ी पर गढ़ बिठली का निर्माण कराया. चौहान वंश के शासकों ने कई विदेशी आक्रांताओं से युद्ध लड़े. राज्य विस्तार की मंशा के चलते तत्कालीन समय के कई राजाओं से लोहा लिया. गढ़ बिठली ने चौहान शासकों का संघर्ष देखा तो अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शौर्य से भी रूबरू हुए. बीच के कालखण्ड में गुलाम वंश, मोहम्मद गौरी, मुगल, मराठा और अंग्रेज शासन के साथ आजाद भारत भी देख रहे हैं.
गढ़ बिठली के अतीत में वैभव भी है संघर्ष भी. वर्तमान में गढ़ बिठली के नाम पर मुख्य द्वार और परकोटे की दीवारें रह गई है. ये दीवारें कई जगह से जीर्णशीर्ण हो चुकी है. कई जगह अतिक्रमण हो चुका है. तारागढ़ पर अल्पसंख्यक वर्ग की आबादी बसी हुई है. यहां कोई हिन्दू परिवार नहीं रहता. गत ढाई दशक पहले अजमेर में तत्कालीन यूआईटी अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत ने गढ़ बिठली के मुख्य द्वार से पहले पहाड़ी पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान का स्मारक बनवाया था, जो आज भी अजमेर आने वाले पर्यटकों को सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शौर्य से अवगत कराता है.
कार्यक्रम में ये रहे मौजूद: कार्यक्रम में रावत चंद्रसिंह चौहान, डॉ. शैतान सिंह, डॉ. कुलदीप शर्मा, सुरेंद्र सिंह रावत, नारायण सिंह रावत, हेम सिंह वर्मा, धर्मेंद्र सूरीवाल, अशोक सोनी, गणपत सिंह रावत, किशन गुर्जर, उमेश शर्मा, गजेंद्र सिरोया, विजय सिंह, सैयद अखिल हुसैन, रामदेव सिरोया आदि उपस्थित रहे। विजय कुमार शर्मा ने वीर रस से ओतप्रोत कविता पाठ किया.
ईटीवी से साभार