सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ विवेक माथुर ने मित्तल हॉस्पिटल में किया उपचार
अजमेर, 28 मई()। सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट एंड हार्ट फेलियर एक्सपर्ट डॉ विवेक माथुर ने मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर अजमेर में उपचार के लिए भर्ती एक हृदय रोगी के कार्डियक रीसिंक्रोनाइज़ेशन थेरेपी (सीआरटी—डी) कर पीड़ित को राहत पहुंचाई है।
डॉ विवेक माथुर के अनुसार कार्डियक रीसिंक्रोनाइज़ेशन थेरेपी एक विश्व स्तरीय तकनीक है जिसको बाई वेंट्रिकुलर पेसिंग ऑपरेशन के नाम से भी जाना जाता है। कार्डियक सीआरटी डी प्रक्रिया हृदय में एक विशेष प्रकार का पेसमेकर प्रत्यारोपित करने के लिए की जाती है। य
ह विशेष रूप से उन हृदय रोगियों के लिए अनुशंसित होती है जिन्हें सडन कार्डियक डेथ का खतरा होता है तथा जिनका हार्ट काफी कमजोर होता है।
डॉ विवेक माथुर ने बताया कि मित्तल हॉस्पिटल में जिस रोगी को सीआरटी—डी प्रणाली अपनाकर उपचार किया गया दरअसल उन्हें बहुत पहले हार्ट अटैक आने पर एंजियोप्लास्टी की जा चुकी थी। उन्हें स्टेंट लगाए गए थे। उसके बाद एक बार फिर रोगी को तकलीफ हुई तो उन्हें दवाइयों के सहारे हृदय का उपचार दिया गया। रोगी नियमित जांच में रहा। पिछले दिनों रोगी को दिल की धड़कन बहुत तेज हो गई। जांच करने पर पाया कि रोगी का दिल काफी कमजोर है। हार्ट करीब 30 से 35 प्रतिशत ही काम कर रहा था। रोगी का पिछला रोग उपचार इतिहास जानते हुए उन्हें सीआरटी—डी के माध्यम से ही उपचार का निर्णय किया गया। रोगी और परिवारजनों से राय कर रोगी के उपचार की सहमति बनाई गई।
डॉ विवेक माथुर ने बताया कि कार्डियक रीसिंक्रोनाइजेशन एक बैटरी चालित, धातु से बना, कॉम्पैक्ट उपकरण होता है। सीआरटी—डी प्रणाली को सामान्य भाषा में मामूली सर्जरी के ज़रिए अपनी त्वचा के नीचे पेसमेकर लगाना कहा जाता है। पेसमेकर जो हृदय कक्षों को एक साथ पंप करने में सक्षम बनाता है ताकि हार्ट फेलियर के उपचार में सहायता मिल सके। डिवाइस के तार दिल के दोनों तरफ स्थित वेंट्रिकल्स से जुड़े होते हैं।
डॉ विवेक माथुर ने बताया कि अजमेर में सीआरटी—डी प्रणाली से हृदय रोगियों को उपचार मिलना बड़ी उपलब्धि है। बहुत से हृदय रोगी इस आधुनिक तकनीक से उपचार के प्रति जानकारी ही नहीं रखते हैं। सीआरटी—डी प्रणाली दो तरह से काम करती है। इसमें सीआरटी यानी कार्डियक रीसिंक्रोनाइजेशन थैरेपी जो हृदय को मजबूत करती है और डी यानी डीफिब्रिलेटर थैरेपी जो रोगी को ‘सडन हार्ट डेथ ‘ से बचाती है।
उन्होंने कहा कि अनेक बार देखा गया है कि हृदय रोगी के दिल की धड़कन अनियंत्रित बनी रहती है। किन्तु वे उसके प्रति गंभीर नहीं होते। हार्ट कमजोर होने के बाद भी वे अपने दिल की धड़कन के अनियंत्रित होने को समझ नहीं पाते। यही कारण होते है जब यह सुनने को मिलता है कि व्यक्ति ने जिम करते करते प्राण त्याग दिए या नाचते हुए प्राण निकल गए।
उन्होंने बताया कि कमजोर दिल वालों के लिए यह आक्रामक सर्जरी है। जिन लोगों को कभी अचानक मूर्छा आई हो उन्हें भी अपने चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। इसे स्थानीय या सामान्य संज्ञाहरण (एनेस्थीसिया) के जरिए किया जाता है। प्रक्रिया आमतौर पर 2 से 4 घंटे में पूरी हो जाती है। हृदय रोगी को पूरी तरह से ठीक होने के लिए 24 से 48 घंटे तक अस्पताल में रहने के बाद कुछ हफ्तों का आराम करना पड़ता है। डॉक्टर द्वारा मंजूरी दिए जाने तक 6-8 सप्ताह तक मेहनती कामों से बचने का सुझाव दिया जाता है।
डॉ विवेक माथुर ने कहा कि मित्तल हॉस्पिटल के कार्डियोलॉजी विभाग में चिकित्सक व तकनीकी स्टाफ की अनुभवी टीम वर्षों के अनुभव के साथ, सटीकता और विशेषज्ञता से कार्डियक रीसिंक्रनाइज़ेशन थेरेपी प्रक्रिया करती हैं। कुशल देखभाल और श्रेष्ठ परिणाम सुनिश्चित करते हुए समय पर निदान और उपचार करने का प्रयास किया जाता हैं।