भक्ति सभर म्यूजिकल धार्मिक अंताक्षरि

जैन चैलेंजर ट्राॅफी, खरतरगच्छ बालिका परिषद को
बीकानेर, 4 अगस्त। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के गच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्ती प्रवर्तिनी वरिष्ठ साध्वीश्री शशि प्रभा म.सा. के सान्निध्य में रविवार को सुबह नौ बजे को बागड़ी मोहल्ले की ढढ््ढा कोटड़ी में भक्ति सभर म्यूजिकल धार्मिक अंताक्षरि, जैन चैलेंजर ट्राॅफी प्रतियोगिता हुई। करीब तीन घंटें चली प्रतियोगिता में जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ, तेरापंथ व साधुमार्गी जैन संघ व विभिन्न मंडलों की 14 टीमों के 25 श्राविकाओं सहित 42 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्री संघ की ओर से छह चरणों में आयोजित संगीतमय प्रतियोगिता मंे प्रत्येक मंडली के तीन सदस्यों ने गीतमाला राउंड, शब्द राउंड, मुखड़ा अंतरा, धुन, प्रसंग तथा एक्शन राउंड में अपनी सुरीली आवाज से भक्ति गीतों की प्रस्तुतियां दी। प्रतियोगिता में श्री खरतरगच्छ बालिका परिषद ने पहला, सामायिक मंडल व महावीर मंडल ने संयुक्त अंकों से दूसरा तथा आदिश्वर मंडल ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। निर्णायक डाॅ.कल्पना शर्मा, वरिष्ठ गायक मगन कोचर व गौरी शंकर सोनी थे। प्रतियोगिता का संयोजन करते हुए साध्वीश्री सौम्यगुणा जी.मसा., वरिष्ठ गायक सुनील पारख, महेन्द्र कोचर तथा गणेश सुराणा और अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने प्रतिभागियों के अनुत्तर होने पर भजनों की प्रस्तुतियां दी।
प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाली रानी बाजार महिला मंडल, साधुमार्गी जैन महिला मंडल, महावीर, वीर, कोचर, श्री जैन मंडल, आदिश्वर मंडल, विचक्षण महिला मंडल, खरतरगच्छ महिला परिषद, श्री जैन तेरापंथ महिला मंडल, सामयिक मंडल, अखिल भारतीय खरतरगच्छ बालिका परिषद की सभी प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया।
प्रतियोगिता में टीमों के नाम जैन धर्म के अनुसार ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सिद्ध, साधु, अरिंहत, नवंकार,नवपद, सिद्धाचल, उपाध्याय, आचार्य, गिरनार, सिद्धाचल, पावापुरी आदि दिए गए। तीन चरणों में सबसे कम अंक प्राप्त करने वाली टीमें बाहर हो गई तथा शेष टीमों ने फाइनल मुकाबले में अधिक अंकों से फाइनल में बेहतरीन प्रस्तुत से ट्राॅफी पर कब्जा किया।
साध्वीश्री शशि प्रभा म.सा. ने प्रवचन में कहा कि परमात्मा की भक्ति में भाव प्रधान होता है। संगीत के साथ भावमय होकर भक्तिगीतों में लीन होकर की गई साधना अधिक सार्थक व बेहतर रहती है। परमात्मा साधक,आराधक व भक्त के भाव देखते है, रूप,सौन्दर्य, वैभव, संपन्नता या निर्धनता नहीं। साध्वीश्री सौम्य गुणा ने श्रावक-श्राविकाओं के प्रश्नों का जवाब देते हुए कहा कि तीर्थंकर के शरीर पर 1008 लक्षण होते है। एक काल चक्र में 48 तीर्थंकर होते है। अयोध्या में 19 कल्याणक हुए है। उन्होंने गीत ’’अपने गुरू की म्हैतो बनी सरे चेलनिया’’ सुनाते हुए कहा कि धार्मिक, सत्संग प्रवचन के कार्यों में बहाने बाजी नहीं करनी चाहिए।

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