सिंधु संस्कृति को जानकर ही भारत को पहचाना जा सकता है- देवनानी

सिंधु शोध पीठ ने आयोजित की महाराजा दाहिरसेन के बलिदान दिवस पर संगोष्ठी

महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में आयोजित हुआ कार्यक्रम

वासुदेव देवनानी

 अजमेर, एक जुलाई। महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय की सिंधु शोधपीठ द्वारा मंगलवार को वीर शिरोमणि महाराजा दाहिरसेन का गौरवशाली सिंध प्रदेश विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

     इस अवसर पर मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारे राष्ट्रगान में सिंध का नाम है अतः सिंध प्रदेश हमारे दिलों में बसा है। भारत की पहचान सिंध की संस्कृति है। विश्व को श्रेष्ठ सभ्यता, आवासों का निर्माण, बेहतरीन नगर रचना प्रदान करने वाली सिंधु घाटी की सभ्यता है। यदि भारत को समझना है तो सिंध की संस्कृति को जानना होगा। राजस्थान सरकार सिंधु दर्शन यात्रा के लिए 15 हजार का भी अनुदान दे रही है। भारत विभाजन की विभीषिका से त्रस्त होकर आज भारत के प्रत्येक भाग में सिंधी समुदाय के लोग बसे हुए हैं जो भारत में भारतीय संस्कृति के साथ दूध में शक्कर की तरह रच बस गए हैं। सिंधी भाषा की समृद्धता उसकी लिपि में निहित है। आज जो स्थान महाराणा प्रताप का राजस्थान में है वही स्थान सिंध में सिंधुपति महाराजा दाहिर सेन का है जिन्होंने अपने पूरे परिवार को सिंध की रक्षार्थ बलिदान कर दिया। सिंध में सनातन धर्म एवं संस्कृति के रक्षण का बीड़ा महाराजा दाहिरसेन ने उठाया एवं उनकी पत्नी लाडी बाई एवं पुत्रियां परमल एवं सूर्य कुमारी ने मलेच्छों के हाथों में पड़ने के बजाय अपने प्राण त्याग दिए। सिंध ने वीर पुरूष तो दिए ही हैं साथ ही अनेक संतों की कर्म भूमि रही है।

     विश्वविद्यालय के कुलगुरू प्रो. कैलाश सोडाणी ने बताया कि प्रत्येक विद्यार्थी को पढ़ने की आदत डालने की आवश्यकता है। हम खूब काम करें और खूब पढ़ें। आज विश्वविद्यालय ने स्मृति चिन्ह के रूप में पुस्तकें भेंट करने की परंपरा स्वाध्याय के स्वभाव को विकसित करने के लिए ही प्रारंभ की गई है। विश्वविद्यालय का प्रयास है कि सिंधु शोधपीठ एक जनचेतना का आधार बने।

     सिंधु शोधपीठ के निदेशक प्रो. सुभाष चन्द्र ने बताया कि वर्ष 2015 में स्थापित की गई। इस सिंधु शोधपीठ ने विगत वर्षों में सिंधी भाषा के विकास उन्नयन एवं हमारे सिंधी समाज के मन में रची बसी हुई उस भावना को आगे बढ़ाने का काम किया है। यद्यपि सिंधु प्रदेश अब भारत का भौगोलिक हिस्सा नहीं है। भविष्य में हम पुनः सिंधु प्रदेश को भारत का हिस्सा बनते हुए देखेंगे और इस वीर गाथा को उसी प्रदेश के अंचल में गाएँगे। उन्होंने बताया कि पीठ के द्वारा इसी सत्र में एनसीपीएल द्वारा संचालित सिंधी भाषा लर्निंग सर्टिफिकेट प्रांरभ किया जा रहा है।

     इस अवसर पर शोधपीठ द्वारा आयोजित की गई निबंध प्रतियोगिताओं में चाहत नानकानी, शिवानी सेन, रिया वलेछा, वंशिका ने प्रथम स्थान अंजलि हरवानी, टीना टेलर, मनीषा बिनयानी, सिमरन गागरानी, तीसरे स्थान पर पायल सेन, मेनका नंदवानी, आकाश नागौरा, प्रियांशी छतानी रहीं वहीं सांत्वना पुरस्कार छवि कुमावत, हर्षिता सेन, लवीना फुलवानी, कृष्णकांत, मोलिका, नौसिन, चांदनी एवं अंशिका ने प्राप्त किया। प्रो. सुभाष चन्द्र ने बताया कि इन प्रतियोगिताओं में विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र सहित प्रथम पुरूस्कार राशि 11000 रूपए, द्वितीय पुरुस्कार राशि 5100 रूपए एवं तृतीय पुरुस्कार में 2100 रूपए की राशि प्रदान की गई तथा सांत्वना पुरूस्कार 1100 रूपए की राशि विजेता विद्यार्थियों को प्रदान की गई। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राजूलाल शर्मा ने किया।

     इस अवसर पर विश्वविद्यालय के आचार्यगण प्रो. हासो दादलानी, डॉ. सीपी दादलानी, डॉ. कमला गोकलानी, प्रो. अनुरोध गोधा, प्रो. सुब्रतो दत्ता, प्रो. शिवदयाल सिंह, प्रो. शिवप्रसाद, प्रो. प्रवीण माथुर, प्रो. अरविंद पारीक, प्रो. मोनिका भटनागर, प्रो ऋतु माथुर, डॉ. लारा शर्मा, डॉ. ए जयन्ती देवी, डॉ. अश्विनी तिवाड़ी, डॉ. लक्ष्मी ठाकुर सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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