
वे “शुभदा” संस्था के उन बच्चों को लेकर अजमेर के CSM सिनेमा पहुँचे, जिनकी आँखों में भी सपने हैं, पर जिन्हें देखने की दुनिया की दृष्टि अभी अपरिपक्व है। वे बच्चे, जो ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और अनेक जटिल शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं — आज एक नए सिने-संसार से रूबरू हुए।
फिल्म थी – “सितारे ज़मीन पर”, आमिर खान की नवीनतम कृति, जो केवल पर्दे पर चलती हुई छवियाँ नहीं थी, बल्कि हर दृश्य, हर संवाद एक खामोश दिल की गूंज बनकर उभरा। डाउन सिंड्रोम और न्यूरोडाइवर्जेंट युवाओं की असली उपस्थिति, उनकी सहजता, संघर्ष और आत्म-सम्मान का प्रदर्शन, जैसे बच्चों के भीतर की कोई बुझी लौ फिर से चमक उठी हो।
शुभदा के बच्चों की आँखों में उस क्षण जो चमक थी, वह सितारों से कम न थी। वे हर दृश्य पर हँसे, ताली बजाई, खुद को पर्दे में देख पाने का सुख पाया। यह एक मूक क्रांति थी — जो किसी मंच से नहीं, बल्कि मन के भीतर घट रही थी।
और मैं, इस भावनाओं की झील में एक तटस्थ दर्शक नहीं, अपितु एक भागीदार बना। उन स्मृतियों का सहभागी, जिनमें हृदय की गहराइयों से उठी मुस्कुराहटें थीं, और चुपचाप बहती संवेदनाएँ। यह केवल एक फिल्म देखना नहीं था — यह संवेदना का उत्सव था।
दिलीप पारीक