ग्राहृय परीक्षण के केन्द्र, तबीजी फार्म, अजमेर के उप निदेशक कृषि (शस्य) श्री मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि इन दिनों मूंगफली की फसल में टिक्का रोग (पत्ती धब्बा), पीलिया रोग व सफेद लट कीट के प्रकोप के कारण काफी हानि होती हैं। सभी कृषकों को सलाह दी जाती हैं कि इनके प्रकोप से बचाने हेतु विभागीय सिफारिश अपनायें एवं रसायनों का प्रयोग करते समय हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क तथा पूरे वस्त्र पहने।
कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि), डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने बताया कि मूंगफली में कॉलर रॉट के कारण पौधे मुरझा जाते हैं एवं ऐसे पौधों को उखाड़ने पर तने व जड़ के संधि बिन्दु पर काले रंग की फफूंदी दिखाई देती हैं। खड़ी फसल को इस रोग से बचाने के लिए हैक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ई.सी. या प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. का डेढ़ मिली प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर मृदातर (ड्रैंचिग) करें।
मूंगफली में टिक्का रोग के कारण पत्तियों पर मटमैले गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इससे बचाव के लिए रोग की शुरुआती अवस्था में आधा ग्राम कार्बेन्डाजिम या एक मिली हैक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ई.सी. या एक मिली प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. या एक मिली टेबुकोनाजोल 5 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. का प्रति लीटर पानी या मैन्कोजेब डेढ किलो प्रति हैक्टेयर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें एवं 10-15 दिन बाद दो बार छिड़काव पुनः दोहरायें।
कृषि अनुसंधान अधिकारी (कीट), डॉ. कमलेश चौधरी ने सलाह दी कि मूंगफली की खड़ी फसल को सफेद लट से बचाने के लिए चार लीटर क्यूनालफॉस 25 ई.सी. या 300 मि.ली. इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल.प्रतिहैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ देवें अथवा कीटनाशी रसायन को सूखी बजरी या खेत की साफ मिट्टी (80-100 किलोप्रति हैक्टेयर) में अच्छी तरह मिलाकर पौधों की जड़ों के आस-पास डाल दें एवं फिर हल्की सिंचाई करें ताकि कीटनाशी पौधों की जड़ों तक पहुंच जायें। खड़ी फसल में उपचार मानसून की प्रथम बरसात के साथ अधिक संख्या में भृंग निकलने के 21 दिन बाद करें।
मूंगफली की फसल को पीलिया रोग से बचाने के लिए 5 ग्राम हरा कसीस/फेरससल्फेटव 2.5 ग्राम चूने का प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर या 0.1 प्रतिशत गंधक के अम्ल का घोल बनाकर फूल आने से पहले एक बार व फूल आने के बाद दूसरी बार छिड़काव करें। ध्यान रहे इस घोल में थोड़ी मात्रा में साबुन या स्टिकर आदि अवश्य मिलावें।