अंतराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन के स्थापना दिवस पर अंतराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन एवं मां भारती ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित रक्त दान शिविर में आज 109 युनिट रक्त दान किया गया एवं 27 रजिस्ट्रेशन रक्तदान के लिये उपयुक्त नहीं पाये गये।
अंतर्राष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन के महामंत्री उमेश गर्ग ने बताया कि – अंतर्राष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन की युवा शाखा के अध्यक्ष पुष्पेन्द्र पहाडिय़ा के अथक प्रयासों से कार्यक्रम बहुत सुंदर तरीके से आयोजित हुआ। रक्तदान कार्यक्रम में विशेष रूप से निर्वार्णपीठाधीश्वर आचार्य अखाड़ा परिषद राजगुरु बीकानेर स्वामी विशोकानंद भारतीजी महाराज और प्रेम प्रकाश आश्रम वैशाली नगर के स्वामी रामप्रकाश जी महाराज का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि सभी प्रकार के दान श्रेष्ठ होते है परंतु रक्तदान सर्वश्रेठ दान है जो दूसरों को तो जीवन दान देता ही है, परन्तु इससे दाता का कल्याण भी होता है। प्रकृति में पेड़ पौधे नदियां, वायु हमें देना ही सिखाती है देना हमारी संस्कृति का स्वभाव है।
समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. संजीवजी माहेश्वरी, अध्यक्ष, राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर एसोसियेशन ने रक्तदाताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि – शत् हस्त समाहर सहस्र हस्त संकिर अर्थात् रक्तदाता के पित्तृ देवता भी रक्तदाता से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते है, इससे घर में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। रक्तदान की आवश्यकता एवं महत्व के बारे में आज के समाज को बहुत अधिक जानकारी देने की जरूरत महसूस नहीं होती है लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि एक यूनिट रक्त से चार से पांच व्यक्तियों को लाभ हो सकता है पहले जमाने में एक यूनिट रक्त से सिर्फ एक व्यक्ति को लाभ होता था लेकिन आजकल कंपोनेंट थेरेपी की वजह से रक्त के विभिन्न-विभिन्न हिस्सों को विभिन्न-विभिन्न आवश्यकताओं वाले मरीजों को दिया जाकर उनकी आवश्यकता की पूर्ति की जाती है और वह व्यक्ति स्वस्थ महसूस करता है। सामान्य व्यक्ति के शरीर में लगभग चार से पांच लीटर रक्त होता है जिसमें से यदि 300 मिली. रक्त निकल भी लिया जाए तो उसे किसी भी प्रकार की असुविधा या नुकसान का सामना नहीं करना पड़ता है दान हमारे पौराणिक आख्यानों में बहुत अधिक महत्वपूर्ण एवं महत्व वाला बताया गया है जिसका उदाहरण महर्षि दाधीच द्वारा दिए गए अपनी स्वयं की हड्डियों का दान था जिसके कारण जिससे बने हुए वज्र से देवताओं ने दानवों पर विजय प्राप्त की। इसी प्रकार दान का जो गहन अर्थ है वह दया से भी जुड़ा हुआ है महाराज शिव ने एक कबूतर की प्राण रक्षा के लिए अपने शरीर के अंगों को उसके बराबर का मांस काट कर देने के लिए प्रयास किया लेकिन वह कबूतर स्वयं भगवान नारायण थे जो कि इतने भारी हो गए कि अंतत: महाराज शिव उसे कबूतर के वजन के बराबर मांस दान करने के लिए अपने स्वयं को उसे पर तराजू के दूसरे और प्रस्तुत कर दिया तो भगवान ने प्रसन्न होकर उनका सम्मान किया यह पौराणिक आख्यान तो है, लेकिन आज से बहुत अधिक पीछे ना जाकर भामाशाह दीवान टोडरमल आदि आदि लोगों के उदाहरण बहुत पुराने नहीं है जिन्होंने अपने दान से समाज एवं संस्कृति की रक्षा की वैश्य समाज अपने पुरुषार्थ के लिए जगजाहिर है।
पुष्पेन्द्र पहाडिय़ा ने संबोधित करते हुए कहा – पुरुषार्थ के साथ-साथ दया एवं दान इस समाज का एक अभिन्न अंग है जिसके लिए कहा गया है कि शत-शास्त्र समाहार सहस्त्र हस्त संग्रह अर्थात आप 100 हाथों से कमाओ लेकिन हजार हाथों से दान करो यह तभी संभव है कि जबकि दान की भावना हमारे अंदर हो।
जिलाध्यक्ष रमेश तापडिय़ा ने बताया कि रक्तदान शिविर का शुभारम्भ भगवान महावीर के श्रीचरणों में अक्षत अर्पित कर मंगलाचरण के साथ किया गया। संस्था के संरक्षक एवं भामाशाह श्री कालीचरण दास जी खण्डेलवाल, प्रदीप पाटनी, अध्यक्ष श्री दिगम्बर जैन बड़ा धड़ा पंचायत, रमेश अग्रवाल, सुभाष नवाल, नीरज जैन-उपमहापौर, पवन ढिल्लवाल-माँ भारती ग्रुप, रूबी जैन-पार्षद आदि के कर-कमलों से किया गया। इस कार्यक्रम में शहर के अनेक गणमान्य महानुभाव उत्साहवर्धन हेतु उपस्थित रहे। श्रीवल्लभ माहेश्वरी, राजेन्द्र मित्तल, मोहन खण्डलेवाल, आनंद प्रकाश गोयल, राधेश्याम सोमानी आदि ने पंजीयन एवं प्रमाण पत्र की सेवायें बखूबी निभायी।
युवा शाखा पुष्पेन्द्र पहाडिय़ा, मनीष खण्डेलवाल, अमृत अग्रवाल, कमल खण्डेलवाल, नितिन जैन आदि द्वारा सभी अतिथियों का शॉल-श्रीफल भेंट कर स्वागत किया गया।
उमेश गर्ग, जिला महामंत्री
मो. 9829793705