अजमेर 13 जुलाई मणिपुंज सेवा संस्थान में वयोवृद्धा महाश्रमणी गुरूमाता महासती श्री पुष्पवती जी (माताजी) म.सा. आदि ठाणा-7 के चातुर्मास में श्रावक-श्राविकाएं उमंग भरी भक्ति से जिनवाणी श्रवण करने के लिए आ रहे
हैं।
प्रवचन के दौरान उपप्रवर्तिनी सदगुरुवर्या डॉ. श्री राजमती जी म.सा. ने फरमाया – अपने घर में रहते हुए भी आज व्यक्ति परेशान, दु:खी और तनाव में रहता है। घर हैप्पी होम की जगह टेन्शन हाऊस बना हुआ है क्योंकि परिवार के सदस्यों में विनय गुण का अभाव है। घर-घर में लड़ाई-झगड़े, बिखराव, तनाव व आपसी कलह के पीछे मूल कारण विनम्रता का लुप्त होना या सुप्त होना है। इसके कारण परिवार बिखर रहे हैं, एक सदस्य दूसरे का दुश्मन बना बैठा है। जहां प्रेम का सागर उमडऩा चाहिए वहां छोटी-छोटी बातों पर क्रोध उबल रहा है। घमण्ड-अहंकार बर्बादी की वजह बन रही है। जिसमें विनय का सदगुण है, उसमें निश्चित ही सहनशीलता स्वत: उत्पन्न होने लगती है। विनय ऐसा सदगुण है जो आध्यात्मिक दृष्टि से कर्मों की निर्जरा करने में सहायक है वहीं घर परिवार में सुख-शान्ति कायम रखने वाला है।विनीत व्यक्ति ही सुखी व आनन्दमय रह सकता है।
साध्वी डॉ. राजरश्मि जी म.सा. ने फरमाया – द्वेष का दावानल चित्त की वृत्तियों को दूषित करने वाला है। इससे वैर भाव बढ़ता है और व्यक्ति दूसरों के दोष देखने वाला एवं उनका तिरस्कार करने की कोशिश करता है।ईर्ष्या का जन्म भी हो जाता है और दूसरों के गुण सहन नहीं होते। द्वेषी व्यक्ति कटु और कर्कश वाणी के द्वारा वचन से भी हिंसक हो जाता है। क्रोध और उत्तेजना में आकर मन, वचन और काया से हिंसक बनने पर अपने चित्त को अशांत कर लेता है और वातावरण को भी दूषित करके वैर की गाँठ को मजबूत करता है।
साध्वी डॉ. श्री राजऋद्धि जी म.सा. ने कहा – बचपन के संस्कार जीवन के अंत तक बने रहते हैं और कभी-कभी सरल आत्माएं वे काम कर जाती है जिनकी खुशबु सैंकड़ो-हजारों वर्षों तक सुगंध देती है। सरल आत्माओं को ही मोक्ष मिलता है, कठोर को नहीं।
दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक बालक-बालिकाओं के लिए धार्मिक शिक्षण शिविर का आयोजन किया जिसमें साध्वी वृंद के साथ श्रीमान् ज्ञानचंद लोढ़ा, विमल जी कावडिय़ा ने बच्चों को धार्मिक अध्ययन करवाने में बहुमूल्य योगदान दिया।