गुरू की आज्ञा मानने वाला कभी दु:खी नहीं – उपप्रवर्तिनी डॉ. श्री राजमती जी म.सा.

अजमेर 14 जुलाई मणिपुंज सेवा संस्थान में मंगलमय चातुर्मास के दौरान महाश्रमणी गुरूमाता महासती श्री पुष्पवती जी (माताजी) म.सा. आदि ठाणा-7 के सान्निध्य में जिनवाणी की धारा प्रतिदिन प्रवाहित हो रही है।

धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए उपप्रवर्तिनी सदगुरूवर्या डॉ. श्री राजमती जी म.सा. ने फरमाया – जब तक जीवन में सही ज्ञान देने वाला गुरू नहीं और गुरू की आज्ञा की पालना श्रद्धा-भक्ति-विश्वास से नहीं हो पाती, तब तक इंसान का जीवन दु:खी-परेशान और तनाव ग्रस्त रहता है। खुशी और प्रेम जीवन की दुर्लभ दौलत है परन्तु यह तभी संभव है जब गुरु के वचन हितकारी लगे और वैसा ही जीवन बने। मन और चित्त की शुद्धि करने का वर्षावास का योग सर्वश्रेष्ठ निमित्त है जिसमें गुरूजनों का सान्निध्य मिलने से अज्ञान का अंधकार नष्ट होता है और सम्यक ज्ञान की रोशनी सहजता से प्रकट होने लगती है। यह तय है कि गुरू की आज्ञा मानने वाला कभी दु:खी हो ही नहीं सकता। वह स्वयं खुशी व प्रेम से लबालब होकर दूसरों को भी सुकून पहुँचाता है। चातुर्मास में गुरू के सान्निध्य से कभी वंचित नहीं होना। जीवन के अमूल्य क्षणों को भव्य बनाने यह श्रेष्ठतम अवसर है।
साध्वी डॉ.श्री राजरश्मि जी म.सा. ने फरमाया – हिंसा सबसे बड़ा पाप है। जो व्यक्ति को पतित करता है, वही पाप कहलाता है। जब साधक सही ज्ञान प्राप्त करता है तब राग-द्वेष की स्थितियाँ सीमित और एक दिन खत्म भी हो सकती हैं। फिर जो पाप होंगे उन्हें प्रायश्चित अथवा पश्चाताप से नष्ट किया जा सकता है। इसलिए पापी से नहीं पाप से घृणा करें। पापी भी उस दिन बहुत बड़ा धर्मात्मा बन सकता है जब वह सम्यक ज्ञान प्राप्त कर लेता है। भगवान महावीर का सिद्धान्त जीओ और जीने दो परम आनन्द की अनुभूति कराने वाला है। ध्यान रखना चाहिए कि प्रमाद पूर्वक किसी के प्राणों को दु:ख देना हिंसा है औश्र उनसे प्रज्ञापूर्वक बचना अहिंसा है।
साध्वी डॉ.श्री राजऋद्धि जी म.सा. ने कहा – जब तक परिश्रम करते रहोगे जीवन में धन लक्ष्मी के आने का द्वार खुला रहेगा परन्तु जिस दिन संतोष धारण कर लोगे मन की शांति का खजाना हाथ लग जायेगा।                                     धर्मसभा में आज श्रीमती सुशीला लोढ़ा एवं विमलेश जी खटोड़ ने छ:-छ: उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये। संघ ने तपस्यार्थियों की हार्दिक अनुमोदना की। इसके अलावा भी आयंबिल, एकासन एवं उपवास के प्रत्याख्यान भी कई श्रावक-श्राविकाओं ने ग्रहण किये।

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