
धर्मानुरागियों को सम्बोधित करते हुए उपप्रवर्तिनी सदगुरुवर्या डॉ. श्री राजमती जी म.सा. ने फरमाया – अरिहंत जो राग-द्वेष से रहित हो गये, उन्हें संसार के किसी भी अच्छे या बुरे व्यक्ति से कोई मतलब नहीं होता। वे तो जन्म-मृत्यु से मुक्त होकर सिद्ध हो गये लेकिन उन महापुरूषों का गुणगान करने से अपना भला जरूर होता है। यदि हम वीतरागी परमात्मा की भक्ति या उनको दिल से वंदन करेंगे तब हमें निश्चित आत्म शांति का अनुभव होगा। जीवन में नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। यही तो बिना मांगे मोती की प्राप्ति है। वीतरागी आत्माओं की स्तुति से, उनके गुणगान करने से बुद्धि निर्मल होती है और अष्टकर्मों के रज मैल धुल जाते है। जब सच्ची व पवित्र भावना से महान् आत्माओं का गुणानुवाद किया जाता है तो साधक के व्यवहार व आचरण में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है और मोह-ममता का चक्रव्यूह और रागद्वेष छूट जाता है। परमात्मा की भक्ति व उनके गुणगान का चमत्कार है।
साध्वी डॉ. श्री राजरश्मि जी म.सा. ने फरमाया – अध्यात्म का पथ जागरूक लोगों के लिए है। ज्ञान जागृति के क्षणों में पैदा होता है। जो जागृत हुए उन्हें रत्नत्रय प्राप्त होते हैं, उन्हें ही दुनिया पूजती है। देवता भी उन्हें नमन, वन्दन करते हैं। उत्कृष्ट त्यागी-तपस्वी महापुरूष ही प्रेरणा के प्रदीप बनते हैं एवं उनका नाम युगों-युगों तक जयवन्त रहता है।
साध्वी डॉ. श्री राजऋद्धि जी म.सा. ने फरमाया – हर कदम पर सावधान रहिए। एक कमजोर कड़ी पूरी जंजीर के लिए खतरा बन सकती है और हमारी एक चूक 99 सफलताओं पर पानी फेर सकती है।
आज उवसग्गहरं जाप के लाभार्थी प्रदीपजी मंजु जी अभिषेक जी, शिखा-गौरव जी सोनी परिवार का श्री संघ की ओर से आभार व्यक्त किया गया। संघ में तपस्या का क्रम भी जारी है।