अजमेर का दुर्भाग्य की सैकड़ो साल बाद भी बरसात के तेज बहाव वाले क्षेत्र का हम तकनीकी के माध्यम से उनका रूट नहीं बदल पाए।
*प्रताप सिंह यादव*
इसे विडंबना ही कहेंगे की करीब 70 साल से जो मैंने देखा अंदर कोट लोंगिया मोहल्ला,बाबूगढ़ आदि क्षेत्रों से नला बाजार, दिल्ली गेट,गंज, फवारा सर्कल,बजरंगगढ़ चौराहा, नई चौपाटी, चौधरी कॉलोनी, हरि भाऊ उपाध्याय नगर, रीजनल कॉलेज चौराहा, मित्तल अस्पताल के सामने व अंदर, दरगाह बायपास रोड, मदार गेट, मार्जिनल ब्रिज,
व फाइव सागर रोड आदि क्षेत्रों में बरसात के समय पानी का भारी भराव रहता है।
इस बीच सरकार ने इन क्षेत्रों में हजारों करोड रुपए समय समय पर खर्च किए।लेकिन वह सभी खर्च बिना किसी प्लानिंग के बिना किसी तकनीकी रिपोर्ट के खर्च किए गए,जिसका नागरिकों को एक पैसा भर का भी लाभ नहीं हुआ।

। क्योंकि नेताओं को आनासागर को चारों तरफ से पाट कर वहां प्लॉट काटने थे,बस्तियां बसाई जानी थी और भारी राशि से अपनी जेब में भरनी थी ।
सागर विहार कॉलोनी, साहू का कुआं, गूंगे बहरों की स्कूल, चौपाटी से लेकर रीजनल कॉलेज तक का मुख्य मार्ग कभी आना सागर का हिस्सा हुआ करता था। इसी प्रकार अजमेर यूआईटी द्वारा बनाई गई विश्राम स्टडी जो आज उज्जवल पड़ी हुई है वह भी पूरी तरह आना सागर का हिस्सा हुआ करती थी।
लूटमार की शुरुआत तो 1980 के आसपास राजस्थान हाउसिंग बोर्ड ने इस क्षेत्र में आनासागर को सिमित कर आनासागर में सागर विहार नामक कॉलोनी काटकर शुरुआत की।
बचे हुए कार्य को गढ़ 10 वर्षों में हजारों लाखों कचरे के डम्पर आना सागर के किनारे किनारे डालकर उसे आनासागर की जगह सूखा क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया और उसके किनारे सेवन वंडर्स चौपाटी व घूमने का स्थान बना दिया गया जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सही नहीं माना। यहां बना हुआ सिने वर्ल्ड के साथ-साथ सैकड़ो कंपलेक्स यहां तक की होटल मानसिंह आना सागर की जमीन पर ही बने हुए हैं लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो इस कार्य को कौन रोकेगा ।
आप सब की जानकारी में है जब गंगा,घग्गर, लूनी,पार्वती,सतलज, ब्रह्मपुत्र, शिप्रा, कृष्णा, पार्वती,कावेरी,गोदावरी, साबरमती, माही व चंबल आदि का बहाव क्षेत्र मोड़ा जा सकता है, तो अजमेर के उपरोक्त बताए गए स्थानों का बहाव क्षेत्र क्यों नहीं बदला जा सकता।
लेकिन नगर निगम ada, PWD, सिचाई व जल संरक्षण विभाग इसका संयुक्त रूप से विस्तृत मास्टर प्लान तकनीकी रूप से बनवाएं तो यहां ऐसे हालात नहीं होते ।
साथ ही आना सागर का लेवल 22 फीट से घटकर 12 फिट नहीं किया होता तो अजमेर दक्षिण के निचले क्षेत्रों में किसी भी हालत में पानी नहीं भरता।
आशा है तथाकथित भ्रष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अजमेर दक्षिण व उत्तर के विधायक एवं राज्य सरकार को भगवान सद्बुद्धि देगा और वह बरसात के बाद इन सभी समस्याओं के साथ-साथ अन्य जो मैं नहीं लिख पाया हूं उन सभी का स्थाई समाधान निकालेंगे।
स्मार्ट सिटी में हजारों करोड रुपए शहर को इन संकटों से बचाने के लिए आए थे ना की सेवन वंडर पाथवे आजाद पार्क को नष्ट करके कंक्रीट का गोदाम बना दिए जाने व पटेल मैदान को आम नागरिकों के लिए बंद कर देने के लिए आए थे। अजमेर का इंदौर स्टेडियम जहां पिछले लंबे समय से लोग खेलों का अभ्यास करते थे उसे जबरन तोड़कर होटल बना दिया गया वह अपने नजदीकी व्यक्ति को संचालन सौंप दिया गया, जो वैधानिक कृत्य है। सुभाष उद्यान का भी जो बहुत बड़े भूभाग में फैला हुआ था उसे सौंदर्य करण के नाम पर एक चौथाई क्षेत्र में सिमित कर दिया गया। साथ ही उसे पर टिकट लगा दिया गया जिससे आमजन का वहां जाना करीब करीब बंद हो गया वहां से बाहर से आने वाले जागरण में अन्य व्यक्ति ही जाते हैं।
इन सबसे जनता को तो कोई लाभ नहीं हुआ लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों,तकनीकी अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों का भला जरूर हो गया।
कल जब 1975 जैसे बाढ़ के हालात हो गए थे तो सब सोच रहे थे की 50 साल बाद भी जिला प्रशासन में इसका समाधान क्यों नहीं किया।
आज इतना ही बाकी फिर कभी?