अजमेर, 21 जुलाई। राजस्थान गौ सेवा आयोग ने अतिवृष्टि की स्थिति में गोवंश की देखभाल के लिए दिशा निर्देश जारी किए है।
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. सुनील घीया ने अवगत कराया कि अतिवृष्टि को देखते हुए गौवंश की विशेष देखभाल की जाए। अतिवृष्टि की स्थिति में जलभराव एवं लगातार नमी से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण गलघोंटू, खुरपका मुंहपका, लंगडा बुखार, लम्पी, दस्त आदि रोग फैलने की संभावना बनी रहती है। इसका कारण नमी के वातावरण अत्यधिक बढ़ जाने वाले जीवाणु एवं विषाणु है। गौवंश का इन बीमारियों से बचाव के लिए नियमित रूप से टीकाकरण करावें।
उन्होंने बताया कि नमी के वातावरण में अन्तःपरजीवियों के साथ-साथ ब्राह्य परजीवियों जुंए एवं चीचड़, मक्खी तथा मच्छरों के अधिक होने के कारण गौवंश में कई रोगों के फैलने का कारण बनते है। इनसे बचाव के लिए पशुओं के बाड़ों को ऊंचे स्थान पर रखते हुए नमी से बचाएं। नीम के पत्तों का धुंआ एवं कीटनाशक स्प्रे का उपयोग करें। गौवंश को प्रतिदिन पानी से नहलाएं। दूध दोहन से पूर्व एवं पश्चात थनों को साफ करें अन्यथा थनेला रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। गौवंश में घाव के लिए एन्टीबायोटिक स्प्रे का प्रयोग करें। इससे घाव में कीड़े नहीं पड़ेंगे। साथ ही घाव भी जल्दी सूखेगा।
उन्होंने बताया कि पशुओं को संतुलित आहार देवें। इसमें हरा चारा, सूखा चारा, मिनरल मिक्सर एवं नमक की मात्रा शामिल हो। ग्याभिन गायों का विशेष ध्यान रखें। आपात स्थिति के लिए चारे का भण्डारण सूखे स्थान पर करें। इससे फफूंद के संक्रमण से होने वाले रोग नहीं होंगे। बीमार गौवंश का स्वास्थ्य गौवंश से पृथक कर नजदीकी पशु चिकित्सा संस्था से ईलाज कराएं। ऎसे मौसम में सर्पदंश का भी विशेष ध्यान रखें।
उन्होंने बताया कि आमजन द्वारा स्वयं के घर के आगे पानी की खेली बनाई जाए। इससे कि स्वच्छ पानी गौवंश को उपलब्ध कराया जा सके। मृत गौवंश के निस्तारण यथाशीघ्र सम्मानजनक तरीके से किया जाए। इससे मृत पशु से फैलने वाले संक्रमण से बचा जा सकेगा।