चने की फसल में जड़ गलन, सुखा जड़ गलन एवं उखठा रोगों का करें उचित प्रबंधन

 अजमेर, 25 अक्टूबर। रबी के दौरान चने की फसल में होने वाले विभिन्न रोगों से बचाव के लिए विशेषज्ञों द्वारा बताए गए उपाय करने चाहिए।

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक श्री संजय तनेजा ने बताया कि रबी सीजन में लगभग 3.20 लाख हैक्टर क्षेत्रफल में विभिन्न फसलों की बुवाई कार्य के लक्ष्य जिले को प्राप्त हुए है। इसमे से मुख्य फसलों जैसे की गेहू, जौ, चना, सरसो, तारामीरा, जीरा तथा सब्जियों इत्यादि फसलों की बुवाई कार्य किसानों द्वारा की जाने लगी है। विगत समय में अच्छी वर्षा होने से इस सीजन में अन्य फसलों के साथ-साथ चने का बुवाई क्षेत्रफल भी लगभग 1.55 लाख हैक्टर रहने की सम्भावना है। जिले में रबी के मौसम में दलहन फसलों में चने की फसल प्रमुखता से ली जाती है जो की जिले के कुल बुवाई क्षेत्र का लगभग 50 प्रतिशत तक क्षेत्रफल होने की संभावना रहती है। किसी फसल का क्षेत्र विशेष में एक ही पैटर्न होने से उसमे लगाने वाले कीट-व्याधियो के प्रकोप की भी संभावना भी अधिक रहती है।

उनके निर्देशन में कृषि अधिकारी श्री पुष्पेन्द्र सिंह ने अवगत करवाया की मौसम तथा अन्य अनुकूलता बढ़ने से अन्य कीट व्याधियों के साथ-साथ चने की फसल में मृदा तथा बीज जनित रोग जैसे की जड़ गलन, सुखा जड़ गलन एवं उखठा रोग हानिकारक फफूंद (फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम) द्वारा फैलते है। इनके होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। इनका समय रहते उपचार करने की आवश्यकता है। इस रोग का प्रभाव खेत में छोटे-छोटे टुकड़ों में दिखाई देता है। प्रारम्भ में पौधे की ऊपरी पतियां मुरझा जाती हैं। धीरे-धीरे पूरा पौधा सूखकर मर जाता है। जड़ के पास तने को चीर कर देखने पर वाहक ऊतकों में कवक जाल धागेनुमा काले रंग की संरचना के रूप में दिखाई देता है।

उन्होंने बताया कि चने की फसल में जड़ गलन, सुखा जड़ गलन एवं उखठा रोग की रोकथाम के लिए कई उपाय अपना कर किसान संभावित नुकसान से बच सकते है। भूमि में समुचित जल-निकास की व्यवस्था रहे। पूर्व प्रभावित क्षेत्र में फसल चक्र अपनाएं। सरसों या अलसी के साथ चना की अन्तर फसल लगाना चाहिए। किसान रोग के संभावित क्षेत्रों में चने की रोग रोधी एवं प्रतिरोधी किस्म जैसे आरएसजी-888, सीएसजेडी-884, आरएसजी-963, आरएसजी-945, आरएसजी -807, आरएसजी -902, आरएसजी -991, जीएनजी-1581, आरएसजी -974, सीएसजेके-6, जीएनजी-1958, सीएसजे-515 तथा सीएसजेके-174 इत्यादि का चुनाव करे।

उन्होंने बताया कि भूमि उपचार के लिए बुवाई से पूर्व 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 100 किलो गोबर की खादमें अच्छी तरह मिलाकर 10-15 दिन तक छाया में रखें। इस मिश्रण को बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा करते समय मिट्टी में मिला दें। जड़ गलन, सूखा जड़ गलन एवं उखठा रोगों की रोकथाम के लिए कार्बन्डाजिम एक ग्राम एवं थाईरम ढाई ग्राम या 2 ग्राम कार्बाेक्सीन 37.5 प्रतिशत थाईरम 37.5 प्रतिशत 75 प्रतिशत डब्ल्यूएस या 10 ग्राम ट्राईकोडर्माप्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।

उन्होंने बताया कि कृषकों को समय-समय पर कृषि विभाग द्वारा विभिन्न संवाद कार्यक्रमों, गोष्टियों एवं स्थानीय कृषि अधिकारियों तथा कृषि पर्यवेक्षकों के माध्यम से प्रभावी उपाय बता कर फसलों में होने वाले नुकसान से बचने के लिए जागरूक किया जाता है। अधिक जानकारी के लिए सलाह दी जाती है कि किसान स्थानीय कृषि पर्येवेक्षक या सहायक कृषि अधिकारी या नजदीकी कृषि कार्यालय से संपर्क कर परामर्श उपरांत प्रभावी उपाय अपनाकर कीट-व्याधियों की रोकथाम सम्बंधित कार्य कराए।

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