भारत को पुनः महाशक्ति एवं विश्वगुरू बनाएं-डॉ. मनमोहन वैद्य

swami-vivekananda thumbअजमेर। स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति द्वारा आयोजित प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य ने स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं एवं उनके दर्शन के परिप्रेक्ष में भारत की वर्तमान स्थिति की चर्चा करते हुए भारत को एक बार फिर विश्वगुरू एवं विश्व की महाशक्ति के पद पर आरूड़ करने का आहवान किया। श्री वैद्य ने अपनी उद्बोधन में डॉ. हटिंगटन की पुस्तक ‘हू आर वी‘ का संदर्भ देते हुए कहा कि 2001 में लिखी गई इस पुस्तक में डॉ. हटिंगटन में अमरिकन समाज के समक्ष उपस्थित पहचान के संकट को रेखांकित किया है। इसके विपरित अतिप्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति वाले हिन्दू समाज की पहचान को विकृत करने का प्रयास धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर किया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप सर्वधर्म सद्भावना के स्थान पर सामप्रदायिकता बढ़ रही है।
स्वामी विवेकानन्द के 11 सितम्बर 1893 को शिकागो की धर्मसभा में दिये गये प्रसिद्ध भाषण को उदृत करते हुए उन्होंने बताया कि स्वामी जी ने अपने भाषण में धर्मसभा में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए स्वयं को संसार की सबसे प्राचीन सन्यासिक परम्परा का हिस्सा, सभी धर्माें के उद्गम भारत के प्रतिनिधि तथा लाखों करोड़ों हिन्दूओं का प्रतिनिधि बताया। स्वामी जी की हिन्दूत्व की परिभाषा हिन्दुत्व को इस देश का मूल आधार बताती है। उनके अनुसार हिन्दुत्व मात्र एक पूजा पद्दति ही नहीं अपितु एक मुल्य आधारित जीवन पद्दति है।
डॉ. वैद्य ने यह प्रश्न किया कि इतने उदात्त जीवन दर्शन के बावजूद समाज में जाति भेद, नारी के प्रति विकृत दृष्टिकोण, भौतिकता की दौड़ को स्थान क्यों मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन पद्दति में अध्यात्म एवं भौतिक समृद्धि दोनों को समान रूप से महत्व देते हुए दोनों के मध्य संतुलन रखा गया है। हमारा जीवन दर्शन सफल जीवन ही नहीं अपितु सार्थक जीवन की कल्पना करता है तथा जीवन की सार्थकता इस तथ्य में है कि जो कुछ हमने समाज से ग्रहण किया है उससे अधिक लौटा कर ही हमारा जीवन सार्थक होगा। अधिक धन कमाना, ऊंचा पद प्राप्त करना सफल जीवन हो सकता है परन्तु सार्थक जीवन नहीं। समाज में प्रचलित उच्च जीवन स्तर की अवधारणा पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए श्री वैद्य ने कहा जीवन स्तर उच्च होना उच्च उपभोग स्तर को बताता है, जो कि हमारे दर्शन में सम्मानीय नहीं है। सम्मानीय वह है जो आवश्यकतानुसार उपभोग करते हुए समाज को अधिकतम देने का भाव रखता है। यही धर्म की सही परिभाषा है।
राष्ट्रीय ध्वज के संदर्भ में उसके इतिहास को उदृत करते हुए उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज में विभिन्न रंगों की व्याख्या सांमप्रदायिक आधार पर करने की गलत प्रव्रति का उल्लेख किया तथा 1931 में कांग्रेस की झण्डा समिति जिसके अध्यक्ष पट्टाभि सीता रमैया थे, की सर्वसम्मति से की गई सिफारिश का उल्लेख किया तथा बताया कि उस समिति ने केसरिया रंग को भारतीय समाज का सर्वस्वीकार्य रंग बताया तथा केसरिया रंग नीले रंग के चरखे के प्रारूप को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने सिफारिश की। समिति ने यह भी सिफारिश की कि विभिन्न धर्माें के आधार पर किया गया रंगों का चयन अनावश्यक विवाद को जन्म दे सकता है। अतः राष्ट्रीय ध्वज एक ही रंग का होना चाहिए। श्री वैद्य ने कहा कि बाद की परिस्थितियों में जो राष्ट्रीय ध्वज का स्वरूप बना तथा संविधान सभा द्वारा स्वीकृत किया गया उसे हमारे राष्ट्र ने पूर्ण सम्मान के साथ अंगीकार किया परन्तु इस उदाहरण से सांप्रदायिक तुष्टिकरण की अवधारणा सामने आती है।
भारत की आर्थिक स्थिति की वर्तमान दशा तथा विश्व में पिछड़ने कारण स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया कि अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत आर्थिक महाशक्ति था। भारत का योगदान विश्व जीडीपी में सन् 1750 में 24.5 प्रतिशत था जो वर्ष 1900 में 01.7 प्रतिशत रहगाया। अग्रेंजों की गुलामी के कारण जहां हमारी अर्थव्यवस्था पिछड़ती गई वहीं इस लूट के परिणाम से इंगलेण्ड की अर्थव्यवथा सुदृढ़ होती गई। क्योंकि भारत को गुलाम बनाने से पूर्व विश्व जीडीपी में नगण्य योगदान वाले युरोपियन एवं अमरीकी देश आज समृद्धि के शिखर पर दिखाई देते हैं।
श्री वैद्य ने अपने उद्बोधन के अंत में उपस्थित प्रबुद्धजनों का आहवान किया कि स्वामी जी की शिक्षाओं को सही परिप्रेक्षय में पढ़ते हुए जीवन में उतारने की आवश्यक्ता है तथा स्वामी जी की शिक्षाओं में ही भारत का सुखद भविष्य छिपा हुआ है।
कार्यक्रम के आरम्भ में मुख्य अतिथि श्री देवीराम जोधावत़, रिटार्यड आईएस का स्वागत निरंजन शर्मा ने किया। श्री जोधावत ने अपने उद्बोधन में भारत की गौरवशाली संस्कृति के एतिहासिक परिप्रेक्षय का उल्लेख किया तथा युवाओं में राष्ट्रीय भावना जागृत करने में स्वामी विवेकानन्द में महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया। विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति चित्तौड़ प्रान्त के संयोजक क्षमाशील गुप्त ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। अजयमेरू सार्ध शती समिति के संयोजक उमरदान सिंह लखावत ने बताया कि स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयन्ती के उपलक्ष में विभिन्न कार्यक्रमों की कड़ी में आयोजित इस प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन में समाज के विभिन्न वर्गाें एवं संगठनों के प्रमुख व्यक्ति उपस्थित थे। सार्ध शती समारोह समिति वर्षभर इस प्रकार के आयोजन करने वाली है तथा उन्होंने आगामी 11 सितम्बर को होने वाली भारत जागो दौड़ एवं 12 जनवरी 2014 को मानव श्रृंखला बनाने वाले आगामी कार्यक्रमों का विशेष रूप से उल्लेख किया।
-उमरदान लखावत, संयोजक, विवेकानन्द सार्धशती समारोह समिति
9414281331
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