अजमेर। धार्मिक नगरी पुष्कर और अजमेर की सीमा नागपहाड़ का अपने आप में एक विशिष्ठ ऐतिहासिक महत्व है। पदमपुराण में नागपहाड को पुरूहोता पर्वत के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत ना केवल एक भौगोलिक बलिक आध्यातिमक दृषिट से अपने आप में एक अनूठी रचना है। यहा पर ना केवल ऋषि अगस्त, विश्वामित्र मुनि सहित अनेक साधु संतो ने साधना की है। बलिक इस पर्वत का चप्पा चप्पा पावन माना जाता है। यही पर पांच पांडवो ने अपना अज्ञात वास बिताया था। इसी पर्वत पर मां चामुण्डा विराजमान है, मां चामुण्डा के ऐतिहासिक महत्व और आस्था पर पेश है स्वामी न्यूज की यह विशेष रिपोर्ट।
जब देवता और मानव राक्षसो के आतंक से खोफ में थे तभी सभी ने भगवान शिव से इस संकट की घडी में मदद मांगी। चुंकि अधिकांश राक्षस जाति भगवान शिव की साधक थी। इसलिए भगवान ने उनके श्रृंगार की जिम्मेदारी मां गौरी को सोंपी। मां गौरी ने अपनी समस्त शकितयो को एकृत्रित करके ना केवल राक्षसो का नाश किया बलिक लोगो में मां शकित की भकित के प्रति आस्था भी जतार्इ।
राक्षसों के श्रृंगार के बाद देवताओ ने माता अम्बे से अपना विकराल रूप छोडने की मिन्नते की। इसके बाद माता के अंग अलग अलग कट कर गिरने लगे। यह अंग 52 स्थानो पर गिरे जिन्हे 52 शकित पीठ के नाम से जाना जाता है। इन्ही 52 शकित पीठो में से एक पीठ मां चामुण्ड़ा यानि मणिंक वैदिक पीठ है। यहां पर माता रानी की कलार्इयो से दोनो कंगन गिरे तभी से इसे मणिक वैदिक पीठ के नाम से जाना जाता है।
इस मणिक वैदिक पीठ के इतिहास के बारे में बहुत कम लोंग जानते है। लेकिन समय के साथ भक्तो की शकित और भकित की बदोलत इस स्थान की कायाकल्प होने लगी है। चारो नवरात्रो मे यहां देश के अनेक हिस्सो से आस्था का सेलाब उमडता है। हालांकि सरकार की ओर से इस ऐतिहासिक स्थान के विकास के लिए कोर्इ कदम नहीं उठाए गए है। फिर भी भक्तो की कठिन मेहनत की बदोलत यह स्थान आर्कषक और रमणीक होने लगा है।