अजमेर। चांद की तीस तारिख को मोर्हरम का चांद नजर आया और सादगी के साथ एक तोप चलाकर चांद का एलान किया गया। सन् 1435 हिजरी में ईस्लामी साल के पहले और मुबारक माह मोहर्रम की रसूमात शुरू हो गई। मशहुर सुफी दरवेज हजरत ख्वाजा मोईनद्दीन चिश्ती की दरगाह में मोहर्रम की तैयारियों का आगाज हो गया है। इसी सिलसिले में मंगल के रोज गरीब नवाज गेस्ट हाउस से चैकी शरीफ की सवारी निकाली गई। वहीं पिछले ढाई माह से जारी ताजिये की तामिर का काम भी मुकम्मल हो गया। तकरीबन तीन सदीयों पुरानी ताजियों के तामिर की इस रिवायत को अंजाम देने वाले खलील अहमद उर्फ चांद बाबू के मुताबिक ताजिया शरीफ आज भी उसी शक्ल में है। जिसे उनके अजदाद शुरू किया था। अजमेर का यह ताजिया हिन्दुस्तान में अपनी नौयित्त का है। इसे दरगाह शरीफ का बडा ताजिया कहा जाता है। जो तीन मंजिलों मे तकरीबन 16 फिट बुलंद होता है।