विकास पर अब फिच का झटका

आर्थिक सुधारों को रफ्तार देने की सरकार भले ही लाख कोशिश करे मगर तमाम देसी-विदेशी संस्थानों द्वारा विकास दर अनुमान में कटौती का सिलसिला जारी है। अब ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच ने चालू वित्त वर्ष 2012-13 के लिए अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अनुमान को घटाकर छह फीसद कर दिया है। पहले इसने 6.5 फीसद बढ़ोतरी की उम्मीद जताई थी। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के लिए राहत की बात यह हो सकती है कि यह अब भी बाकी संस्थानों के अनुमान के मुकाबले ज्यादा है।

फिच का कहना है कि बढ़ते राजकोषीय घाटे और निवेश में कमी के चलते उसने अपने अनुमान को घटाया है। ऊंचे राजकोषीय घाटे से इस बात की गुंजाइश बहुत कम बची है कि सरकार खर्च में बढ़ोतरी कर अर्थव्यवस्था को रफ्तार दे सके। साथ ही घरेलू मांग में स्थिरता के चलते भी सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] में तेजी आने की उम्मीद कम ही है। फिच की ‘ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट’ में साफ कहा गया है कि हाल में मनमोहन सरकार द्वारा सुधारों में तेजी लाने की कोशिश के बावजूद अर्थव्यवस्था के चुनौतियां बनी हुई हैं। इसके बाद जिस तरह से राजनीतिक उठापटक शुरू हुई है उससे यही लगता है कि बाकी आर्थिक फैसले लेने को लेकर सरकार पर जोखिम बरकरार है।

हाल ही में केंद्र सरकार ने मल्टी ब्रांड रिटेल और विमानन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] को मंजूरी दी है। साथ डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी और रसोई गैस सिलेंडर पर सब्सिडी में कटौती जैसे कड़े फैसले लिए हैं। इसके बाद से ही देश में राजनीतिक बवाल मचा हुआ है। पिछले हफ्ते ही रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने देश के विकास दर अनुमान को घटाकर 5.5 फीसद किया है।

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