सरकार का सिरदर्द बनी बकाया कर वसूली

सरकार के राजस्व में अपनी आमदनी कम दिखाने वाले तो सेंध लगा ही रहे हैं, ऊपर से कर वसूली नहीं हो पाने से भी राजस्व संग्रह की रफ्तार धीमी हो रही है। समय पर बकाया कर वसूल नहीं पाने के चलते सरकार को इसके बड़े हिस्से को बंट्टे खाते में डालना पड़ा है। बकाया वसूली में हुई देरी और इस राशि के डूब जाने से नाराज संसद की समिति ने राजस्व विभाग से जवाब मांगा है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड [सीबीडीटी] के खाते में वित्त वर्ष 2010-11 में 2,48,927 करोड़ रुपये का कर बकाया था। इसका एक बड़ा हिस्सा 1,30,500 करोड़ रुपये विभिन्न घोटालों के धुरंधरों- पुणे के घोड़ा व्यापारी हसन अली खान, हर्षद मेहता, केतन पारिख समूह और दलाल समूह का है। चूंकि इन लोगों की सारी संपत्ति जब्त हो चुकी है, लिहाजा आयकर विभाग को अब इनसे बकाया कर वसूली की कोई संभावना नहीं है। इसी तरह दोहरे कराधान की संधि के चलते करीब 3,165 करोड़ रुपये के बकाया की वसूली संभव नहीं है।

वित्त पर संसद की स्थायी समिति ने राजस्व विभाग की इस लापरवाही पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भाजपा नेता यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली समिति ने राजस्व विभाग से पूछा है कि आखिर यह स्थिति कैसे उत्पन्न हो गई कि हजारों करोड़ रुपये का टैक्स बकाया समय पर वसूल नहीं किया जा सका। इसके चलते इस राशि बंट्टे खाते में डालना पड़ा है। बकाया कर की इतनी बड़ी रकम बताती है कि सरकार की वसूली प्रक्रिया कितनी कमजोर है। सरकार कुल 2,48,927 करोड़ रुपये के बकाया में से 1,95,511 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष कर अलग-अलग वजहों से वसूल ही नहीं पाई है। समिति का मानना है कि अब बकाया कर की बची राशि को जल्द से जल्द वसूलने की कोशिश की जानी चाहिए।

प्रत्यक्ष कर के साथ-साथ अप्रत्यक्ष करों में भी बकाया सरकार की दिक्कत बढ़ा रहा है। वर्ष 2011-12 में 68,741.02 करोड़ रुपये का अप्रत्यक्ष कर बकाया था। इसमें से 25,531.99 करोड़ रुपये विभिन्न अदालतों में चल रहे मामलों की वजह से फंसे हुए हैं। 33,131.80 करोड़ रुपये के बकाये की वसूली भी मुश्किल है। इस तरह कुल बकाया राशि का 85.31 प्रतिशत विभिन्न अदालतों और ट्रिब्यूनलों के फैसलों के भरोसे है। संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में सरकार के कामकाज के तरीकों से नाराज समिति ने राजस्व विभाग से पूर्ण तथ्यात्मक जानकारी देने को कहा है।

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