रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती ने कहा कि सोने में निवेश मुद्रास्फीति जोखिम से बचने का तरीका नहीं, बल्कि एक सटोरिया गतिविधि है और जिस दर से सोने पर रिटर्न मिल रहा है, उससे इससे जुड़े बड़े जोखिम का ही पता चलता है।
सोने में निवेश को ऊंची मुद्रास्फीति के समक्ष बचाव को जरिया मानने के तर्क को खारिज करते हुए रिजर्व बैंक के सबसे वरिष्ठ डिप्टी गवर्नर ने कहा कि जोखिम से बचने के लिए सोने में किया गया निवेश किस तरह साल दर साल 37 फीसदी का ऊंचा रिटर्न दे सकता है।
चक्रवर्ती ने विवेकानंद एजुकेशन सोसायटी के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, ‘यदि सोना पिछले कुछ साल से 37 फीसदी का मुनाफा दे रहा है तो यह किस तरह से मुद्रास्फीति जोखिम से बचाव का जरिया हो सकता है? दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि सोना सुरक्षित निवेश है। जोखिम बचाव की दृष्टि से किया गया निवेश 37 फीसदी का मुनाफा कैसे दे सकता है? इसका मतलब यह हुआ कि यह निवेश सट्टेबाजी का रूप ले चुका है। उन्होंने कहा कि किसी भी निवेश से यदि बड़ा मुनाफा मिलता है तो जाहिर है कि उक्त परिसंपत्ति जोखिम भरी है।
उन्होंने कहा कि किसी भी निवेश से बड़ा मुनाफा मिल रहा है तो इसका मतलब है कि इससे जोखिम जुड़ा है। यदि सोना 37 फीसदी मुनाफा दे रहा है तो जाहिर है कि यह बेहद जोखिम भरा है।
उन्होंने कहा, मुझे कोई दिक्कत नहीं है यदि आप कहें कि आप सोने पर सट्टा लगा रहे हैं। लेकिन ये मत कहिए कि सोने में निवेश ऊंची मुद्रास्फीति जोखिम से बचाव का जरिया है। सोने के बढ़ते आयात से नीति निर्माता चिंतित हैं, क्योंकि इससे चालू खाता घाटा बढ़ता है। देश से उत्पादों, सेवाओं के निर्यात, विदेशों से होने वाली आय और आयात पर होने वाले कुल खर्च के बीच के फर्क को चालू खाते का घाटा कहते हैं।
सितंबर तिमाही में भारत का चालू खाते का घाटा बढ़कर 5.4 फीसदी या 22.3 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, जिसमें मुख्य योगदान सोने के आयात का रहा।