बैंक बदलने पर भी खाता संख्या न बदलने यानी अकाउंट नंबर पोर्टेबिलिटी की योजना शुरू होने से पहले ही रद होने के कगार पर पहुंच गई है। इस योजना को अमल में लाने संबंधी सुझाव देने के लिए गठित समिति ने कहा है कि बैंक खाता नंबर पोर्टेबिलिटी देश में संभव नहीं है। दरअसल, रिजर्व बैंक (आरबीआई) की इस योजना को देश के बैंकों ने ही लंगड़ी मार दी है। बैंकों ने इस सुविधा के लिए अपने तकनीकी ढांचे में बदलाव करने से साफ मना कर दिया है।
आरबीआई के मुख्य महाप्रबंधक विजय चुग की अध्यक्षता वाली इस समिति की रिपोर्ट में बैंकों के पक्ष को सही ठहराया गया है। समिति ने कहा है कि मौजूदा हालात में सभी बैंकों के लिए एक बैंक खाते की स्कीम लागू करना संभव नहीं है। बैंकों ने समिति को बताया कि उन्होंने काफी सोच-समझ कर बैंक खाते एक खास पैटर्न से तैयार किए हैं। हर बैंक खाता नंबर का एक मतलब होता है और उनके सॉफ्टवेयर भी उसी तरह से बनाए गए हैं। ऐसे में अगर कोई बदलाव किया जाता है तो पूरे सॉफ्टवेयर में भी भारी तब्दीली करनी होगी, जो आसान नहीं है।
दरअसल बैंक खाता पोर्टेबिलिटी योजना लागू करने से पहले प्रत्येक बैंक ग्राहक के मौजूदा अकाउंट नंबर में कुछ संशोधन करना होगा। इसके बाद ही इसे सभी बैंकों में लागू किया जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए ही समिति ने कहा है कि भारत जैसे विशाल देश में सभी ग्राहकों को उसके बैंक खाता नंबर में बदलाव के बारे में सूचना देना ही दुरूह कार्य है। मौजूदा खाते को नए अकाउंट में तब्दील करने के दौरान बैंकों को दोनो तरह के खातों को संचालित करना होगा। यह काम भी तकनीकी तौर पर खासा चुनौतीपूर्ण है।