नई दिल्ली। सहारा समूह की आखिरी उम्मीद पर भी सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार पानी फेर दिया। कोर्ट ने सहारा की वह अर्जी ठुकरा दी, जिसमें कंपनी ने निवेशकों का पैसा वापस करने के लिए कुछ और दिनों की मोहलत मांगी थी। शीर्ष अदालत ने उलटे कोर्ट का आदेश पालन नहीं करने के लिए समूह को फटकार भी लगाई है। कोर्ट के आदेशानुसार समूह की दो कंपनियों को निवेशकों के करीब 24,000 करोड़ रुपये लौटाने हैं। यह रकम सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन (एसआइआरईसी) और सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेंट कॉरपोरेशन (एसएचआइसी) ने बिना सेबी की मंजूरी के डिबेंचर जारी कर जुटाई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने निवेशकों की रकम वापसी सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) पर डाल रखी है। इस मामले में देरी होते देख पिछले हफ्ते ही सेबी ने दोनों कंपनियों व समूह के चेयरमैन सुब्रत राय की संपत्तियों की जब्ती और उनके खातों पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया। मुख्य न्यायाधीश अल्तमश कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस अर्जी पर विचार नहीं कर सकती।
उन्होंने पहले सिर्फ इसलिए समय दे दिया था कि निवेशकों का पैसा लौटाया जा सके। यह अर्जी दुर्भाग्यपूर्ण है और इसे तो जुर्माने के साथ खारिज किया जाना चाहिए। वैसे, कोर्ट ने कोई जुर्माना नहीं लगाया है।
गौरतलब है कि खंडपीठ ने पिछली सुनवाई पर सहारा को कुछ राहत देते हुए तीन किस्तों में फरवरी के पहले सप्ताह तक निवेशकों का सारा पैसा चुकाने का आदेश दिया था। समूह की दोनों कंपनियों ने जनवरी और फरवरी की किस्त अदा नहीं की। इसके बजाय सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कुछ और वक्त मांगा था।
सेबी ने भी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य आदेश का पालन न करने पर सहारा के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल कर रखी है। इस पर एक अन्य पीठ पहले ही सहारा की कंपनियों को अवमानना नोटिस जारी कर चुकी है। वह मामला निवेशकों का पैसा वापस करने का मुख्य आदेश पारित करने वाली पीठ के समक्ष लंबित है। सोमवार को मामले पर सुनवाई के दौरान सहारा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने कुछ और वक्त दिए जाने का अनुरोध किया। वह आगे बहस करते, लेकिन पीठ ने कुछ भी सुनने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, कोर्ट ने निवेशकों की ओर से दाखिल अर्जी पर भी सुनवाई करने से मना कर दिया।