नई दिल्ली। विजय माल्या समेत कई अमीर कर्जदारों को लेकर वित्त मंत्री पी चिदंबरम की भौहें यूं ही नहीं तनी हुई है। मुट्ठी भर रईस और रसूखवाले कर्जदार सरकारी बैंकों की पूरी व्यवस्था को चूना लगा रहे हैं। सरकारी बैंकों का जितना कर्ज फंसा है, उसका 44 फीसद महज ढाई दर्जन बड़े ग्राहकों के पास है, जो वे लौटा नहीं रहे। वित्त मंत्री के निर्देश के बाद अब बैंकों ने इन ग्राहकों से कड़ाई से निपटने का फैसला किया है। फंसे कर्ज [एनपीए] वसूलने के लिए इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, कॉरपोरेशन बैंक, विजया बैंक, इंडियन बैंक, आंध्रा बैंक समेत लगभग दस बैंक अपने अहम कर्जदार ग्राहकों से कर्ज वूसली की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू करने जा रहे हैं। इन सभी दस बैंकों के कुल फंसे कर्ज में शीर्ष 30 कर्जदारों की हिस्सेदारी 50 से 60 फीसद के बीच है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इन बैंकों को कहा गया है कि वे नए वित्त वर्ष [2013-14] में बड़े ग्राहकों से कर्ज वसूलने का अलग से लक्ष्य रखें। बैंकों से कहा गया है कि अगले वित्त वर्ष की शुरुआत में वे वित्त मंत्रालय को बड़े ग्राहकों के पास फंसे कर्ज में होने वाली कमी का ब्योरा सौंपें। इन ग्राहकों से बैंक की बातचीत का नया सिलसिला अगले महीने ही शुरू होने जा रहा है।
दरअसल, वित्त मंत्रालय ने दो वर्ष पहले भी कुल फंसे कर्ज का बहुत बड़ा हिस्सा सिर्फ गिन-चुने ग्राहकों के पास होने को लेकर गंभीर चिंता जताई थी। लेकिन बैंकों ने हालात को ठीक करने के लिए कुछ नहीं किया। लिहाजा सरकारी बैंकों के एनपीए में बड़े 30 ग्राहकों की हिस्सेदारी जो मार्च, 2010 में 34.2 फीसद थी, दिसंबर, 2012 में बढ़कर 44 फीसद हो गई है। इससे पता चलता है कि बड़े व प्रभावशाली ग्राहकों से कर्ज वसूलने में बैंक लगातार असफल रहे हैं।
वित्त मंत्री की नाराजगी भी इसी को लेकर है। शीर्ष 30 ग्राहकों के पास सरकारी बैंकों का मार्च, 2011 में 14,983 करोड़ रुपये का कर्ज फंसा था। यह दिसंबर, 2012 में बढ़कर 41,660 करोड़ रुपये हो गया है। सूत्र बताते हैं कि यह स्थिति तब है जब बड़े ग्राहकों को बार-बार कर्ज भुगतान में रियायत दी जाती है। एक बार कर्ज वसूली समय पर नहीं होती तो बैंक उन्हें कम ब्याज पर और ज्यादा समय में लोन लौटाने की मोहलत भी देते हैं। इसके बावजूद बैंक बड़े ग्राहकों से कर्ज वसूली नहीं कर पा रहे हैं।
यही बैंक 25 हजार से 50 हजार रुपये का कर्ज लेने वाले किसानों या दस लाख रुपये का होम लोन लेने वाले आम आदमी की संपत्तियों को जब्त करने में कोई मुरव्वत नहीं दिखाते। दूसरी तरफ साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेकर नहीं लौटाने वाली विजय माल्या की किंगफिशर के खिलाफ बैंक कुछ नहीं कर पा रहे।