2013-14 के रीयल फैक्टर्स

business-real-factorsनई दिल्ली। वित्त वर्ष 2012-13 रीयल एस्टेट के लिए काफी उठापटक भरा रहा, जो अदालती फैसलों, ऊंची ब्याज दरों, फंड व अप्रूवल की कमी की वजह से फंसे प्रोडक्ट्स के लिए याद किया जाएगा। हमारी टीम की रिसर्च से यह स्पष्ट होता कि वित्तीय वर्ष 2013-14 में प्रमुख आर्थिक घटनाएं रीयल एस्टेट सेक्टर की चाल तय करने वाली हैं। लंबे वक्त से जो दो विधेयक इस क्षेत्र की तस्वीर बदलने वाले हैं, उन पर हलचल शुरू हो चुकी है। ऐसा लगता है कि तमाम दबावों के बावजूद रीयल एस्टेट का नियमन करने वाले विधेयक पर कोई आम राय कायम हो सकती है। मार्च महीने ने जाते-जाते राष्ट्रीय संपादकों के सम्मेलन में इस आशय का बिगुल बजा ही दिया। आवास व शहरी गरीबी निवारण मंत्री अजय माकन ने साफ किया कि सरकार जल्दी ही कैबिनेट के समक्ष एक विधेयक लाने जा रही है, जो रीयल एस्टेट क्षेत्र का नियमन करने वाली संस्था का प्रस्ताव करेगा।

यह विधेयक बजट सत्र के दौरान ही पेश किया जा सकता है। इस विधेयक के कानून बनने के बाद ग्राहकों के हितों की बेहतर रक्षा हो पाएगी और बाजार में वास्तविक खिलाड़ी ही अपने पैर जमा पाएंगे। लेकिन इस विधेयक का दायरा व्यापक हो पाएगा, ऐसा कहना पूर्ण सत्य नहीं होगा क्योंकि मकान का निर्माण संविधान की समवर्ती सूची के तहत आने वाला विषय है। इसमें राज्यों की भूमिका अहम होगी और उन्हें अपने स्तर पर विधेयकों में बदलाव करना होगा।

ग्राहकों पर फर्क सिर्फ इतना होगा कि नियमन के बाद कम से कम सही सूचना लोगों तक पहुंच पाएगी और लोग बेहतर जानकारी के आधार पर मकान खरीदने-बेचने का निर्णय ले पाएंगे।

जमीन अधिग्रहण बिल 120 साल पुराने कानून की जगह लेगा जिसे जमीन अधिग्रहण के लिए आधार माना जाता है। इसका पूरे सेक्टर पर एक सकारात्मक असर देखने को मिल सकता है। वजह यह है कि इस विधेयक के पारित होने से पहले से फंसी कई बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को गति मिल सकेगी। कई बड़ी परियोजनाओं की शुरुआत होने से अर्थव्यवस्था में विकास की एक नही कहानी की शुरू हो सकती है। इससे लोगों को रोजगार मिलने से आदमनी बढ़ेगी। स्थायी मकानों की मांग बढ़ेगी। यह मांग कीमतों पर भी अपना असर जरूर डालेगी।

साल 2013 में आगे चलकर बैंकों की ब्याज दरों में कमी की राह तीसरा और अहम फैक्टर साबित होगी। कई विशेषज्ञों की मानें तो दिसंबर अंत तक ब्याज दरों में 25 से 75 बेसिस अंकों की कमी हो सकती है। यानी आगे मांग बढ़ेगी और इस वजह से कुछ पाकेट्स में कीमतों में इजाफा हो सकता है।

मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआइ की अनुमति पूरी रिटेल चेन के बुनियादी ढांचे के विकास में काफी अहम भूमिका निभाने वाली है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान कुछ कंपनियां इस क्षेत्र मे अपनी रुचि दिखा सकती हैं, जो देश में कॉमर्शियल रीयल एस्टेट में एक नई जान फूंकने का काम करेगी। रुपये में कमजोरी के चलते अनिवासी भारतीय (एनआरआइ) मकान खरीदने में दिलचस्पी दिखा सकते हैं, क्योंकि डॉलर मजबूत होने से उन्हे निवेश पर बेहतर फायदा मिल जाता है।

रीयल एस्टेट के लिए रणनीति :

रेटिंग एजेंसी फिच की सहयोगी इंडिया रेटिंग के मुताबिक साल 2013-14 में रीयल एस्टेट का आउटलुक नकारात्मक से स्थिर कर दिया गया है। रीयल एस्टेट रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ऑगटिक्स के मुताबिक साल 2013-14 रीयल एस्टेट के लिए रिवाइवल का साल होगा। अक्टूबर के बाद मुख्य शहरों में रहने वाली प्रॉपर्टी के दाम 10 से 20 फीसद तक बढ़ सकते हैं। कॉमर्शियल प्रॉपर्टी की कीमतें भी रिटेल में एफडीआइ की वजह से बढ़ सकती हैं। जाहिर तौर पर साल की शुरुआत निवेश के लिहाज से काफी फायदा दे सकती है। उन्हीं प्रोजेक्ट में पैसा लगाएं, जिनका ट्रैक रिकॉर्ड ठीक हो और जो ग्राहकों की सुविधा के लिए जाने जाते हों।

रीयल्टी पर इनका पड़ेगा असर:

-रीयल एस्टेट रेगुलेशन विधेयक।

-जमीन अधिग्रहण विधेयक।

-ब्याज दरों में कमी की संभावना।

-मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआइ।

-रुपये में कमजोरी।

एक तिमाही में कीमतों में बदलाव

शहर बदलाव

दिल्ली 9.6 मुंबई 9.6 कोलकाता 9.4 पटना 9.4 लखनऊ 8.0 इंदौर -1.0 फरीदाबाद -5.1

स्त्रोत : एनएचबी रेजीडेक्स (अक्टूबर-दिसंबर, 2012)

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