बर्लिन। भारत और जर्मनी ने यूरोपीय संघ (ईयू) से मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए कई साल से चल रही वार्ता इसी साल पूरी करने का लक्ष्य रखा है। इस करार के लिए अभी कई मसलों पर मतभेद बरकरार हैं। वहीं, प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इसे बेहद विवादित मसला बताते हुए इस पर संसद में विचार की मांग की है।
जर्मनी तीन दिवसीय यात्रा के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वापस दिल्ली लौट आए हैं। उनकी इस यात्रा के दौरान भारत व जर्मनी के बीच कई समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। दौरे के अंत में मनमोहन व जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने एक संयुक्त बयान जारी किया। इसमें दोनों नेताओं ने कहा कि वे भारत व ईयू के बीच एक ऐसे एफटीए के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो विस्तृत, महत्वाकांक्षी व संतुलित हो। साथ ही, इससे दोनों देशों में विकास व रोजगार निर्माण के लक्ष्य हासिल हों। यह समझौता वर्ष 2013 में ही होने की उम्मीद है।
संयुक्त बयान में एफटीए को इसी साल अमलीजामा पहनाने का यह लक्ष्य मर्केल के बयान के बाद रखा गया है। मर्केल ने साफ शब्दों में कहा था कि समझौते के लिए अभी दोनों पक्षों के बीच सभी मुश्किलें दूर नहीं हुई हैं। मर्केल ने भारतीय बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाए जाने व यूरोपीय ऑटो कंपनियों के उत्पादों पर आयात शुल्क कम करने की मांगों पर जोर दिया है।
एफटीए के लिए मर्केल व सिंह की इस वार्ता के बीच प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने इस समझौते को बेहद विवादित बताया है। भाजपा ने कहा कि इस मसले पर विशेषज्ञों व संबंधित पक्षों की राय लिए बिना वार्ता के अंतिम चरण की शुरुआत की जा रही है। भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने आशंका जताई कि इस एफटीए से भारतीय बाजार ईयू के डेयरी, पोल्ट्री, चीनी, गेहूं, कन्फैक्शनरी, खाद्य तेल और प्लांटेशन उत्पादों से पट जाएगा। इस समझौते का देश की कृषि संप्रभुता और खाद्य सुरक्षा पर सीधा असर पड़ेगा।