“जिँदगी आज/ मौत की गोद में/ आबाद हुई”
1- सँगम खोखला जिस्म, खोखली साँसें रुक रुककर, चलने की चाह में जिँदा कदम लड़खड़ाकर सँभलने लगे हैं- हर आस रेत सी क्यों हाथ से फिसलती है ? सीने से लिपटी, हर खुशी क्यों दम टोड़ती है? ढळती उम्र है पर सूरज ढला नहीं है। 2 : सच की सरहद जिँदगी की शान है सूरज … Read more