कौन है हम लोग का नेता?

IMG-20150323-WA0065हाल ही अजमेर के कुछ तथाकथित जागरूक लोगों के एक समूह, जिसका नाम हम लोग बताया गया है, की बैठक में यह तो तय हो गया कि आगामी अगस्त माह में होने जा रहे नगर निगम चुनाव में पार्षद पद का उम्मीदवार वार्ड के मतदाता तय करेंगे, मगर अब तक ये तय नहीं है कि इस समूह का नेता कौन है? यदि सामूहिक नेतृत्व है तो भी ये पता नहीं कि इसके कोर ग्रुप में कौन कौन हैं? बताया जाता है कि इस समूह की बैठकें पिछले कुछ दिन से चल रही थीं, मगर इसकी भनक तक किसी को नहीं पडऩे दी गई। अब अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार एस. पी. मित्तल ने अपने ब्लॉग के जरिए इसकी ताजा बैठक की जानकारी उजागर कर दी है। उनसे भी पहले इसकी फौरी जानकारी अंकुर सोनी ने भेजी थी, जिसे इसी कॉलम में प्रकाशित किया जा चुका है।
दिलचस्प बात ये है कि बैठक में आम राय थी कि नगर निगम को दलगत राजनीति से मुक्त रखना चाहिए और निगम में ऐसे पार्षद चुने जाएं जो अपने वार्ड के मतदाताओं की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान कर सकें, मगर इसमें कुछ कांग्रेस के सक्रिय नेता भी मौजूद थे, जो पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदार बनते थे। अन्ना आंदोलन से जुड़े लोगों ने भी इसमें रुचि दिखाई है, जिनके पास फिलवक्त सक्रिय राजनीति के लिए कोई मंच मौजूद नहीं है। कुछ टायर्ड और रिटायर्ड लोगों को भी जुटाया गया, जो कि लंबे अरसे से अजमेर शहर की गतिविधियों से कोई भी वास्ता नहीं रखते। बैठक में सरकारी कर्मचारियों की मौजूदगी भी चौंकाने वाली है। ब्लॉग में समूह का प्रमुख कार्यकर्ता अनन्त भटनागर को बताया गया है। वे आदमी तो बड़े सज्जन हैं, मगर उनका न तो खास वजूद है और न ही सक्रिय राजनीति का कोई अनुभव।
आम आदमी पार्टी की तर्ज पर कहा तो ये गया कि नगर निगम के चुनाव में संबंधित वार्ड के मतदाता ही पार्षद पद के उम्मीदवार का निर्णय करेंगे, मगर इसकी प्रक्रिया क्या होगी, इसका कोई खुलासा नहीं हो पाया है।
बताया ये भी गया है कि ईमानदार, स्वच्छ छवि, समाजसेवी, जनसमस्याओं के प्रति जागरुक आदि गुणों वाले व्यक्ति को ही उम्मीदवार बनाया जाएगा, मगर ये तो वक्त ही बताएगा कि ऐसे उम्मीदवार कैसे मिलेंगे और मिल भी गए तो वे जिताऊ भी होंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता।
एक बात और गौर करने वाली है। बताया गया है कि आमतौर पर नगर निगम के माध्यम से सड़क, नाली आदि की सफाई, स्ट्रीट लाइट आदि के साथ-साथ नक्शे स्वीकृति आदि के छोटे-छोटे कार्य होते हैं। राजनीतिक दलों के पार्षदों को मतदाता इधर-उधर तलाश करते रहते हैं, लेकिन ऐसे पार्षद उपलब्ध ही नहीं होते। यानि कि बुद्धिजीवियों के इस समूह ने निगम के सारे पार्षदों को नकारा करार दे दिया है। मजेदार बात ये है कि इस बैठक में वे लोग भी मौजूद थे, जो कि पूर्व में नगर निगम में जिम्मेदार पदों पर चुके हैं।
रही बात इस नए मंच के कार्यालय की तो वह उस होटल आराम में हो रही है, जिसके मालिक दिनेश अग्रवाल बताए जाते हैं, जो कि विश्व हिंदू परिषद से गहरे जुड़े रहे हैं।
एक बारगी ये मान भी लिया जाए कि यह प्रयोग माना तो आदर्शपूर्ण है, मगर है कितना व्यावहारिक, ये तो आने वाले दिनों में ही पता लगेगा। बहरहाल, जो कुछ भी हो, प्रयोग तो वाकई स्वागत योग्य है, मगर भानुमति का यह कुनबा कारगर कितना होगा, इसके बारे में अभी कुछ कहना संभव नहीं है।
-तेजवानी गिरधर

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