अजमेर में ख्वाजा साहब के सालाना उर्स का झंडा 15 अप्रैल को ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर लहर जाएगा। चांद दिखने पर 6 दिवसीय उर्स की शुरुआत 21 अप्रैल से हो जाएगी। अजमेर में मुस्लिम समुदाय के अलावा हिन्दुओं के ऐसे हजारों परिवार हैं, जो ख्वाजा साहब के उर्स का इंतजार करते हैं। छोटे दुकानदार से लेकर बड़े कारोबारी भी उर्स के मेले पर अच्छा व्यवसाय करते हैं। यह कहा जा सकता है कि उर्स के दौरान शहर के लाखों लोगों का जनजीवन प्रभावित होता है। प्रतिवर्ष उर्स की अवधि में पांच-छह लाख जायरीन अजमेर आते हैं। उर्स का मौका दोनों ही समुदायों के लिए उत्सव जैसा होता है। ऐसे मौके पर यदि अजमेर में साम्प्रदायिक तनाव हो और हिन्दू और मुसलमान आमने-सामने खड़े हो जाए तो यह किसी भी दृष्टि से अजमेर के हित में नहीं हो सकता है। 15 अप्रैल को जब उर्स का झंडा लहरने में मात्र सात दिन शेष है, तब 8 अप्रैल को 2 स्थानों पर हिन्दू और मुसलमान आमने-सामने हो गए। चन्दबरदायी नगर के सार्वजनिक पार्क में बने चबुतरे पर हिन्दू देवी-देवताओं की मुर्तियां खंडित कर दी गई। इसी पार्क में दूसरे स्थान पर एक पवित्र मजार भी बनी हुई है। हो सकता है कि जमीनों का कारोबार करने वालों के स्वार्थ हिन्दू-मुस्लिम फसाद करवाने से जुड़े हो। 8 अप्रैल को सुबह चन्दबरदायी नगर में हिन्दू और मुसलमान आमने-सामने हुए तो रात होते-होते देहली गेट स्थित गाछी मोहल्ला में काली माता के मंदिर को लेकर भी हिन्दू और मुसलमान आमने-सामने हो गए, दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हो सकते हैं, ऐसे तर्क हमेशा दिए जाते हैं। तर्कों से निकलकर बात तलवारों तक पहुंच जाती है। ऐसे फसाद अब देश के अधिकांश शहरों में होने लगे हैं, लेकिन अजमेर एक ऐसा शहर है, जहां कि घटना का असर पूरे देश पर पड़ता है। यदि साम्प्रदायिक तनाव रहा, तो उर्स में जायरीन की संख्या कम होगी और इसका असर दोनों समुदायों के लोगों पर पड़ेगा। धनाढ्य लोग तो बर्दाश्त कर लेंगे, लेकिन जो गरीब तबके के परिवार है वे तो साल भर का खर्चा उर्स में निकालते हैं। जूते-चप्पल बेचने वाले से लेकर बड़े-बड़े गेस्ट हाऊस चलाने वाले तक ख्वाजा साहब के उर्स का इंतजार करते हैं। दरगाह से जुड़े हजारों खादिम परिवार चार माह पहले से ही उर्स की तैयारियों में जुट जाते हैं। हो सकता है कुछ शरारतीतत्व उर्स के मौके पर अजमेर का माहौल खराब करना चाहते हो, लेकिन दोनों ही समुदायों के समझदार लोगों का यह दायित्व है कि वे माहौल को खराब नहीं होने दें। जुलूस चेटीचंड का हो या महावीर जयंती का। जब जुलूस ख्वाजा साहब की दरगाह के सामने से गुजरता है तो दरगाह के खादिम न केवल पुष्प वर्षा करते हैं, बल्कि ठंडा पेय पदार्थ पिलाकर सिर पर पगड़ी भी बांधते हैं। जब दरगाह के बाहर इतनी सद्भावना दोनों पक्ष दिखाते हैं, तो फिर छोटी-छोटी बातों को लेकर हिन्दू-मुस्लिम आमने-सामने क्यों होते हैं? 8 अप्रैल को देहली गेट क्षेत्र में जो वारदात हुई वह तो बहुत ही संवेदनशील है, क्योंकि देहली गेट तो अब उर्स मेला क्षेत्र का हिस्सा है। जहां तक प्रशासन का सवाल है तो वह तो स्वयं ही ख्वाजा साहब के भरोसे हैं। उर्स शुरू होने से पहले जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में सभी अधिकारी जुलूस बनाकर पवित्र मजार पर चादर पेश करते हैं और यह दुआ करते हैं कि उर्स शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो जाए। ख्वाजा साहब प्रशासन की इस दुआ को स्वीकार भी करते है। प्रशासन कोई इंतजाम करे या नहीं, लेकिन उर्स के दौरान कोई अप्रिय घटना नहीं होती है। उम्मीद है कि इस बार भी उर्स के दौरान ख्वाजा साहब का करम बरसता रहेगा। दो साम्प्रदायिक घटनाओं के मद्देनजर ही 9 अप्रैल को प्रदेश के डीजीपी मनोज भट्ट ने अजमेर का दौरा किया। भट्ट ने पत्रकारों के समक्ष स्वीकार किया कि उर्स तो ख्वाजा बाबा ही भरवाते हैं। पुलिस तो अपनी ड्यूटी करती है।
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