
-अरुण पाराशर- भाईयो आपको मंत्री जी की दो दिन पहले कही बात पर यकीन नही हो रहा हैं क्या वो हमे बातो ही बातो ये नही समझा गये की – ये पुष्कर वाले कितने मुर्ख हैं पानी दो पानी पिलाओ चिल्ला रहे हैं। बोले थे समझाऊ क्या – पता हैं ना इस पानी से पूरा देश ही क्या पूरा विश्व ही त्रस्त हैं। आई समझ में और कान खोल कर सुनो समझ रहे हो ना में केंद्र सरकार में मंत्री हू ।म्हारी कहूँ मू माहरा गाँव का तालाब ऊँ पीवण र और हापडपा ताइ पीपा पीपा पाणी माहरा माथा पर रोजीना ऊँच र ल्यातो – तो फेर थे कआइ केबो चाओ क थाका घरह पुष्कर जी मू म पीपा भर पाणी पुचाबा चालू- आई केबो चाहो थे सारा मिलर ।
भाई लोगो मंत्री जी हमे बातो ही बातो में बहुत बड़ी बात समझा गये ।समुन्द्र में मीन पियासी वाली कहावत हम पुष्कर वालो के मुहँ पर कस गये ।अरे भाई लोगो तुमारे पास इतना पवित्र सरोवर भरा पड़ा हैं और आप लोग पानी पानी चिल्ला रहे हो। उनका कहने का मतलब देश की नदियाँ मेली हैं तालाब कुएं सूखे पड़े हैं। पर पुष्कर सरोवर में तो इतना तो पानी हैं ही की इस पवित्र जल में आप लोग जब तक समस्या हैं स्नान कर आस्था की डूबकी लगाओ – पीने खाना बनाने के लिए भगवान स्नान के पीपे हंडा चरी मटकियो में भर कर घर ले सकते हो । अरे यारो हम कितने मुर्ख हैं कि मंत्री जी की पीपे वाली बात का गूढ़ अर्थ हमे किसी के समझ में नही आया । खाख में छोरो और गाँव में हेरों। नहीं नही ये सब तोहमे खूब पहले से ही पता था। हम पहले पुष्कर जी मेंरोज नाहते खूब तेरते थे – माहरी दादी भगवान की पूजा स्नान – रोट्या बनाबा न पिबा न पुष्कर जी मू ही पाणी ल्याती ही। जमाना बदला और हमारा रहन सहन और हमारी सोच भी बदल गई ।जिस पुष्कर सरोवर के जल को हम आगन्तुक श्रधालुओ को पवित्र पावन बताकर उसे चरनामर्त मान पीने का आग्रह करते हैं और इसी में उसे आस्था की डुबकी लगाने की कहते है।और ऐसे हमारे कहने और आस्था की वैदिक परम्परा को मानने वाले हजारों श्रधालु हर दिन हर रोज कर रहे और हम रोज करवा भी रहे हैं । पर हम क्यों भूल जाते हैं कि जिसे हम पूज्य पवित्र जल बताकर केवल अपनी रोजी रोटी के लिए दुसरो को तो पवित्र पुण्य प्रदान करवाते हैं। और खुद ये करने में हम पुष्कर वासी संकोच करते हैं और जी क्यूँ चुराते हैं। हम हमारे पवित्र पुण्यदायी सरोवर के जल से हमारा ऐसा व्यवहार क्यों और किसलिए ? क्या हमे कुछ ऐसा वैसा पता हैं किहमारे लिए ये नहाने और पीने योग्य तो कत्तई नही हैं । जरा अब तो सोचो कभी जिस जल को हम बेहिचक पीते थे इसमें रोज मन्त्रो को बोलकर स्नान करते थे ? वही उसी सरोवर का जल हमारे भाव – मन ही मन हमारी बुद्धि की नजर में ये तो जता ही रहा हैं कि यदि हम इसे पियेगे और इसमें स्नान करेंगे तो बीमार पड़ सकते हैं? और ये हकीकत भी हैं।
अब जरा हम होश सम्भाले – और अपने आप से पूछे कि हम आज कहाँ और किस जगह आ फसे हैं या सोचे आज हम किस कदर लुट पिट चुके हैं कि हम सच भी बयाँ करने जेसे भी नही रहे? आप माने या ना माने में तो मान चूका हू कि हम आज वहाँ आकर खड़े हो गये हैं। सामने जहाँ अथाह जल हो – मगर समुन्द्र खारा हैं। जिसमे ना तो नहा सकते ना ही इसका जल पी सकते?
न जनता को पीने का जल न ही सरोवर को पूजने पूजवाने के लिए पवित्र जल ?
मंत्री जी ने सच ही कहा था ? उठाओ पीपे और सरोवर में से क्यों नही भर लाते – आपके पास तो सरोवर भरा पडा हैं? लाये पीये नहाये पर क्या करे हमारी हकीकत पर हम केवल रो ही सकते हैं ? हम रोज चिल्ला रहे हैं पर हमारी सुनता कोन हैं? कुछ गलत लिखा हो माफ़ करना । अपनी बात कहने का तो सबको हक हैं। कोई माने या माने । जय पुष्कर राज की ।