अजमेर की ज़िला प्रमुख नौसिखिया हैं और वे बच्चों की तरह “मैं तो वही खिलौना लूँगा ” वाली ज़िद कर लाल बत्ती की कार के लिए मचल रही हैं।
ज़िला प्रमुख को शायद यह ज्ञान नही है कि सत्ता की ताकत इन दिखावटी वस्तुओं से नही बल्कि जनता के बीच जाकर काम करने से आती है।जनता के दर्द को समझना उसे दूर करने के उपाय खोजना तथा समाधान करवाना ही उनकी राजनेतिक हैसियत बना सकता है।उन्हें समझना चाहिए कि इतनी कम उम्र में उन्हें जनता की सेवा करने का अवसर मिला है। वे युवा हैं तथा शिक्षित हैं।उनका व्यव्हार पुरानी पीढ़ी के स्वार्थी नेताओं से अलग होना चाहिए।उन्हें इस अवसर का भरपूर उपयोग करना चाहिए। इससे न केवल ग्रामीण जनता का दर्द कम होगा उनकी निजी पहचान व लोकप्रियता भी बढ़ेगी।
अजमेर में श्रीमती अनीता भदेल का उज्जवल उदहारण सामने रहा है।वे भी लगभग उसी तरह से नगर परिषद् की सभापति बनी जैसे वन्दना ज़िला प्रमुख ।किन्तु अनितजी मैं काम को सीखने की ललक थी।जनता से उन्हीने सीधा संपर्क रखा।छोटे मोटे अहम् का भ्रम नही पला। यही कारन है कि राजनीति की सीढिया चढ़ते हुए वे मंत्री पद के मुकाम पर पहुंची हैं।

लाल बत्ती परिवार वालों या मोहल्ले वालों के बीच एक शान का प्रतीक भले ही हो आज के समय में जनता का इस पर कोई फरक नही पड़ता। उलटे नफरत ही पनपती है।दूसरे यह कहना कि दूसरे ज़िला प्रमुख लगा रहे हैं का तर्क बेमानी है।जो बात कानूनी नही है वो दूसरे की गलती के कारन जायज़ कैसे हो सकती है?
अगर ज़िला प्रमुख को वाकई पॉवर प्राप्त करनी है तो वह लाल बत्ती से हासिल नही होगी।ग्रामीण जनता मौसम की मार से दुखी है उनके लाल ज़ख्मों को सहलाकर वो असली पॉवर प्राप्त कर सकती हैं।
डॉ अनंत भटनागर