अजमेर नगर निगम के चुनाव के लिए वार्डों का हुआ आरक्षण
स्ट्रीट लाइट में तो भाजपा की सरकार ने भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं ही तोड़ दी है। शहर में सीएफएल लाइटें लगी है, लेकिन सरकार ने शहर में सोडियम लाइटे मानकर एलईडी लाइट लगाने का नया ठेका दे दिया है। भाजपा के पार्षद नीरज जैन साधारण सभा में एलईडी लाइट के ठेके में हुए भ्रष्टाचार का मामला उठाया है, लेकिन जैन की एक नहीं चली। सरकार ने पूरे नगर निगम को भ्रष्टाचार में डूबो दिया है। इसे भाजपा सरकार का मजाक ही कहा जाएगा कि आरएएस अधिकारी सीमा शर्मा को निगम का आयुक्त नियुक्त किया, जबकि सीमा शर्मा स्वायत्त शासन विभाग की क्षेत्रीय उपनिदेशक के पद पर काम कर चुकी हैं। वर्तमान में दूसरे आयुक्त का पद रिक्त पड़ा है। काम चलाने के लिए पुष्कर नगर पालिका के ईईओ शशिकांत शर्मा को अतिरिक्त चार्ज दे रखा है। राजस्व अधिकारी के पद भी रिक्त हैं। अधिशाषी अभियन्ता राजीव गर्ग को लेकर पहले ही झमेला हो रखा है। सरकार ने हिन्दी नहीं जानने वाले आईएएस एच.गुईटे को सीईओ नियुक्त कर रखा है। हालात इतने खराब हैं कि जब जनसामान्य गुइटे से मिलने जाता है तो ट्रांसलेटर के माध्यम से संवाद हो पाता है। निगम की एक महिला कर्मचारी हिन्दी सुनने के बाद अंग्रेजी में गुइटे को समझाती है और फिर गुइटे जो अंग्रेजी में बोलते हैं, उसे हिन्दी में लोगों को समझाया जाता है।
क्या भाजपा का यही सुशासन है?
भ्रष्टाचार हो या प्रशासनिक व्यवस्था, दोनों में ही भाजपा की सरकार ने नगर निगम का भट्टा बैठा कर रख दिया। कांग्रेस के शासन में जो भ्रष्टाचार फैला था, उसे भाजपा की सरकार ने तेजी से बढ़ाया है। इस डेढ़ वर्ष की अवधि में नगर निगम मे ंएक भी ऐसा कार्य नहीं हुआ, जिसे नगर निगम के चुनाव में भाजपा अपनी उपलब्धि के तौर पर गिना सकती है। निगम में डिप्टीमेयर भाजपा के अजीत सिंह राठौड़ हैं, लेकिन राठौउ़ का होना या नहीं होना बराबर है। वर्ष 2010 में जब सीधी प्रणाली से चुनाव हुए तो कांग्रेस के कमल बाकोलिया मेयर बने। प्रदेश में साढ़े तीन वर्ष तक कांग्रेस का शासन रहा, लेकिन बाकोलिया निगम से संबंधित एक भी कार्य अपनी सरकार से नहीं करवा सके। यहां तक कि निगम की कमेटियों का गठन भी बाकोलिया नहीं कर सके। पूरे पांच वर्ष में बाकोलिया ने भूरूपांतरण कमेटी की बैठक मुश्किल से एक या दो बार की ओर दोनों बार कोई निर्णय नहीं कर पाए। जबकि बाकोलिया को पार्षदों से भी कोई खतरा नहीं था, क्योंकि सीधीप्रणाली की वजह से साधारण सभा में अविश्वास प्रस्ताव भी नहीं आ सकता था। बाकोलिया ने अपने पांच साल ऐशोआराम से गुजार दिए, लेकिन उपलब्धि के नाम पर एक भी काम गिनाया नहीं जा सकता। ऐसा नहीं कि बाकोलिया को अवसर न मिला हो। बाकोलिया के कार्यकाल में ही केन्द्र में सचिन पायलट जैसे प्रभावी नेता मंत्री थे। लेकिन बाकोलिया ने पायलट से एप्रोच कर अजमेर के लिए कुछ भी नहीं करवाया। पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर बाकोलिया यह नहीं बता सकते कि उनके कार्यकाल में विकास का कौनसा कार्य हुआ। बाकोलिया तो साधारण सभा की बैठकें भी सही प्रकार से संचालित नहीं कर सके। बाकोलिया का निगम प्रशासन पर भी कोई नियंत्रण नहीं रहा। कांग्रेस के शासन में निगम में जितने भी सीईओ नियुक्त हुए, उन सभी से बाकोलिया का विवाद रहा। सी.आर.मीणा को तो हटवाने के लिए बाकोलिया ने तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत तक को पत्र लिखा। यह बात अलग है कि जब भाजपा के शासन में सी.आर.मीणा की दोबारा से निगम में नियुक्ति हुई तो दोनों में मित्रता देखी गई। एक सीईओ हरफूल सिंह यादव के साथ तो बाकोलिया का भीषण विवाद सामने आया। भू-रूपांतरण समिति की बैठक की कार्यवाही पर यादव ने आज तक भी हस्ताक्षर नहीं किए। हो सकता है कि अगस्त के बाद जब नया मेयर आए तो पिछले कार्यकाल के कई गुल खिल जाए।
कांग्रेस में कहां है मेयर का उम्मीदवार
इस बार मेयर का चुनाव निर्वाचित पार्षद मिलकर करेंगे। जहां भाजपा के मेयर के लिए लम्बी लाइन लगी हुई है। वहीं फिलहाल कांग्रेस में मेयर पद का कोई उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा है। शहर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता पार्षद का चुनाव नहीं लडऩा चाहते, जबकि पुराने कांग्रेसी डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, ललित भाटी जैसे नेताओं को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट कभी भी उम्मीदवार नहीं बनने देंगे। गत विधानसभा का चुनाव लडऩे वाले हेमंत भाटी भी पार्षद का चुनाव नहीं लडऩा चाहते हैं। वैसे भी मेयर का पद इस बार सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस किसी सिंधी को मेयर का उम्मीदवार बना सकती है।
कांग्रेस में शैलेन्द्र अग्रवाल, अमोलक सिंह छाबड़ा, ललित गुर्जर, टैंगोर, विजय नागौरा आदि माने जा रहे हैं। भाजपा में लम्बी लाइन है। मेयर बनने के लिए भाजपा में उम्मीदवारों की लम्बी लाइन है। शहर भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव, पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, सुरेन्द्र सिंह शेखावत, नीरज जैन, जे.के.शर्मा, धर्मेश जैन, सोमरत्न आर्य भागीरथ जोशी, शिवशंकर हेड़ा, रमेश सोनी, कृष्ण गोपाल जोशी आदि शामिल हैं। लेकिन भाजपा में सबसे बड़ी समस्या बड़े नेताओं के पार्षद चुनने को लेकर है। आरक्षण की वजह से नेताओं के वार्ड इधर-उधर हो गए हैं। ऐसे में नए वार्ड से चुनाव हारने का खतरा सभी मेयर उम्मीदवारों को है।
देवनानी के इलाके में एससी का मात्र एक वार्ड
अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में वार्ड संख्या 6 ही एससी के लिए आरक्षित है। इसे क्षेत्रीय विधायक वासुदेव देवनानी की राजनीतिक कुशलता ही कहा जाएगा कि एससी के 14 वार्ड दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में निर्धारित किए गए हैं।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511
