राजेंद्र हाड़ाअजमेर के पार्षदों की रीति-नीति, चाल-ढाल और कामकाज से बुरी तंग आए कुछ लोगों ने पिछले महीनों एक बार फिर नगर निगम चुनावों में तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कवायद शुरू की। यह कवायद अपने अंजाम तक पहुंचने से पहले ही सिमट गई। इस बार नाम दिया था ‘हम’। तय किया था, टिकट देंगे ऐसे को जो ईमानदार, शहर को समर्पित और किसी राजनीतिक दल का सदस्य नहीं हो। उनके प्रेरणा नायक और आदर्श थे ‘आप’ के अरविंद केजरीवाल। नाम को लेकर भी कुछ ऐसी ही कवायद रही। प्रयोग नाकाम क्यों रहा ? इसके एक नहीं कई कारण गिनाए जा सकते हैं। प्रमुख तो यही कि पुरानी गलतियों से सबक नहीं लिया गया। पहल ईमानदार और नीयत साफ का संदेश कैसे जाए ? गलतियां ध्यान में तो थीं परंतु उनका अध्ययन भी कुछ होता है। बड़े-बड़े दावे होते रहे और उसे तय करते रहे। ‘हम’ के कर्ताधर्ताओं में प्रमुख थे एक ऐसे सज्जन जो किसी जमाने में कांग्रेस वार्ड मेम्बर का चुनाव हार चुके थे फिर गांवों की पंचायत की बड़ी कुर्सी थाम ली। बाद में तिवारी कांग्रेस में चले गए और फिर लौटकर कांग्रेस में आ गए। इंदिरा गांधी से आापातकाल लगाने की सलाह देने, अमिताभ बच्चन को फोन कर शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री बनवाने जैसे कई अविश्वसनीय किस्से उनकी जुबान पर है जिनके चलते अब कांग्रेस में कोई भाव नहीं देता तो इस तीसरी दुकान से फिर जिंदा होने की कोशिश की। एक और सज्जन हैं जिन्होंने सारी जिन्दगी नगर परिषद में नौकरी की और बीस-बीस रूपए तक की रिश्वत खुले आम खाई। बाद में कांग्रेस का दामन थाम लिया और फिर नगर निगम को ईमानदार बनाने का ठेका लेने में जुट गएं। ‘हम’ में कई ऐसे थे जो शहर में जागरूकता, जनचेतना, कला, साहित्य, संगम के लिए गठित होने वाली हर नई संस्था में होते हैं। सुबह संस्था की चर्चा होती है, चार बजे तक गठन और शाम को अखबारों में जा रहे प्रेस नोट में उनके पदाधिकारी बनने की खबर। कुछ दिन जोश, फिर नहीं अपना ही होश के हालात में जीते हैं। ‘हम’ का अब अता पता नहीं है। फिर भी उनसे जुड़े लोगों से कुछ सवाल। 1- क्या उनके कार्यकर्ता पारदर्शिता में विश्वास जताते हुए अपने या अपने आश्रित के नाम की जमीन, मकान, दुकान की पूरी जानकारी, उनकी आज की कीमत, कहां से, कब और कैसे मिली, उनकी आय के सभी स्रोत, सभी तरह के टैक्स की अदायगी, अपना संक्षिप्त बायो डाटा आज भी सार्वजनिक कर सकते हैं ? 2-उनका विजन। शहर के लिए वे करना क्या चाहते थें और खुदा न खास्ता अगर जीत जाते तो क्या उनका पार्षद उनकी सोच पर खरा उतरता ? 3-‘हम’ के ज्यादातर कर्ता धर्ता आनासागर झील के चारों ओर बसी पॉश कॉलोनियों के जागरूक और संभ्रात नागरिक थे। उनके घरों का गंदा-बदबूदार पानी आना सागर में नहीं जाए उसके लिए उन्होंने अब तक क्या कुछ किया ? 4- रोजाना आनासागर चौपाटी से गुजरते क्या उनका ध्यान कभी चौपाटी पर लगी फल और अन्य थड़ियों और जी मॉल नामक अतिक्रमण पर कभी गया है और इस बारे में उन्होंने क्या कुछ किया ? अपन नहीं मानते कि खुद की चाल-ढाल और सोच सुधारे बगैर नगर निगम का सुधार वे कर पातेे।