इन दिनों शहर में सोशल मीडिया पर पूर्व में बनाई गई किसी हम लोग संस्था के किये गए प्रयासों की खिल्ली उड़ाई जा रही है। मैं इस बारे में चर्चा शुरू करने से पहले एक बात स्पष्ट कर दूं कि मैं उस संस्था से कभी जुड़ा नहीं रहा हूँ। एक तटस्थ पत्रकार की तरह मैंने उस घटनाक्रम को देखा भर है।
हम लोग भारतीय बुद्धू बक्से का स्वर्णिम इतिहास है। यह दूरदर्शन पर देश का सबसे पहला सबसे लंबा चलने वाला सोप ओपेरा था।
जहाँ तक हम लोग संस्था के बैनर तले हर वार्ड में पूर्व में स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने का सवाल है, मेरा मानना है कि अगर वह संस्था जमीनी आंदोलन चुनाव पूर्व छेड़ती तो इस चुनाव का नजारा ही कुछ और होता।
उस संस्था की नीव रखने के लिए उस तरह भीड़ जुटी थी जैसी चुनाव लड़ रहे किसी प्रत्याशी के चुनाव कार्यालय के उदघाटन पर उमड़ती है। यह और बात है कि उनमें से 90 फीसदी लोग उस प्रत्याशी को वोट नहीं देते। वे लोग तब वोट देते हैं जब उस प्रत्याशी का पलड़ा भारी होने लगता है।
उस संस्था के गठन की कुछ कमियां इस प्रकार है-
1. हम लोग संस्था में अधिकतर ऐसे लोग जोड़े गए या जुड़ गए जो अपनी-अपनी पार्टी के पूर्व पदधिकारी यानी चुके हुए कारतूस थे।
2. उन्होंने चुनाव पूर्व कोई जमीनी आंदोलन नहीं छेड़ा।
3. वे लोग कभी जनता से नहीं जुड़े। ऐसे में किसी को उनकी परवाह नहीं रही।
4. वह संस्था खयाली पुलाव पकाती रही। उसके पदाधिकारी यूटोपिया रूपी आदर्श स्थिति के मात्र सपने देखते रहे।
5. उस संस्था ने शहर को कोई जुझारू नेता भी नहीं दिया क्योंकि जुझारू नेता आंदोलनों की भट्टी से निकलते हैं। अतः वह संगठन अप्रासंगिक हो गया।
मैं एक बात और कहना चाहता हूँ कि आदर्शों की बात कहने के लिए या चुनावों या समाज में आदर्श स्थापित करने के लिए एकजुट होने वालों की खिल्ली मत उड़ाओ।
अगर वे लोग आदर्शों का ढोंग रचकर आपसे धन या वोट ले गए हों तो वे निंदा के पात्र हैं। उन्होंने एक संगठन खड़ा करने का प्रयास किया किन्तु वे उस संगठन को फैला नहीं सके तो उन लोगों को कोसो मत बल्कि समाज में आई जड़ता को दूर करने आप आगे आ जाएँ। आज हर ओर उदासीनता और जड़ता फैली हुई है, ऐसे में निंदा करने वाले ही भगतसिंह बनकर दिखा दें तो वे नायक कहला सकेंगे। नालायकों का उपहास उड़ाना आसान है आपमें नायक बनने के कितने गुण हैं पहले खुद से पूछें।
तो फिर मैं यह उम्मीद करूँ कि निंदक और आलोचक अब समाज के मसीह बनकर आगे आएंगे। समाज तो बाहें फैलाकर स्वागत करने को तैयार बैठा है- हे गाल बजाने वालों आप ही क्रांति की मशाल उठा लो, यह समाज आपका कृतज्ञ रहेगा।
-राजेन्द्र गुप्ता