अजमेर नगर निगम के मेयर पद के चुनाव में भले ही भाजपा के प्रत्याषी धर्मेन्द्र गहलोत जीते हों, मगर जो घटनाक्रम हुआ, उससे पार्टी की जबरदस्त किरकिरी हुई है।
यह अफसोसनाक ही रहा कि भाजपा धर्मेन्द्र गहलोत को टिकट देने के साथ सुरेन्द्र सिंह शेखावत को किसी भी तरह से राजी करने में कामयाब नहीं हो पाई। पार्टी चाहती तो उनको किसी सरकारी पद का लालच दे कर मना सकती थी, मगर इस दिषा में कोई काम नहीं हुआ। नतीजतन शेखावत बागी हो गए। सोचने वाली बात ये है कि जब पार्टी पहले से जानती थी कि आगे चल कर टकराव होगा तो दोनों को एक साथ टिकट दिया ही कैसे। असल में उसे उसी समय फार्मूला निकालना चाहिए था। जाहिर तौर पर जब शेखावत बागी हुए तो मेयर चुनाव के दौरान निगम अखाडा बन गया। पूरे षहर की नजर निगम में हो रही कार्यवाही पर थी। निगम भवन के बाहर जबरदस्त भीड थी और वहां देवनानी विरोधी नारे लग रहे थे। देवनानी का पुतला भी फूंका गया।
ळालांकि पार्टी ने पूरी सावधानी बररते हुए सभी विजयी पार्षदों को बाडाबंद कर दिया था, मगर वाबजूद इसके कुछ पार्षदों ने पार्टी लाइन से बाहर जा कर शेखावत को वोट दिए। इस पूरे घटनाक्रम का सबसे बडा पहलु ये रहा कि भाजपा को एक दिग्गज नेता को गंवाना पडा। ज्ञातव्य है कि शेखावत को पार्टी से निकाल दिया गया है। चूंकि गहलोत के ओबीसी होने के नाते विरोध के चलते शेखावत को सामान्य प्रत्याषी के रूप में भारी जनसमर्थन रहा, इस कारण आगे चल कर भाजपा को इसका नुकसान उठाना होगा।