सफाई मांग कौन रहा है ?

राजेन्द्र हाड़ा
राजेन्द्र हाड़ा
नगर निगम के महापौर के चुनाव में लॉटरी को लेकर आई खबरों की देर शाम सोशल मीडिया पर दो खबरें पोस्ट हुई। एक एसपी विकास कुमार के तबादले की और दूसरी प्रशासन की अर्जेंट हो रही मीटिंग की जिसमें सोशल मीडिया जैसे वाट्स एप, फेस बुक, ट्वीटर आदि पर रोक लगाने के आदेश शीघ्र जारी होने की बात कही गई। जिन्होंने वाट्स एप पर इसे पढ़ा उनमे से कुछ ऐसे थे जो इस उत्तेजना भरी खबरों को जल्दी से जल्दी फारवर्ड या कॉपी-पेस्ट कर दूसरे के सामने अपनी सक्रियता और जागरूकता के झंडे गाड रहे थे। एसपी विकास कुमार से सिवाय आम नागरिक के वे सब दुखी हैं जिनका धंधा-पानी दो नंबर के कामों से जुड़ा है। इसलिए समझदार लोग ऐसी अफवाहों को गंभीरता से नहीं लेे रहे थे, हां मौजूदा व्यवस्था पर दुख जाहिर कर रहे थे कि अगर यह खबर सही है तो फिर भगवान ही मालिक है। अगले ही दिन उपमहापौर के चुनाव के बाद एक स्पष्टीकरण यानि सफाई पोस्ट हुई। उसी सोशल मीडिया पर जिसके एक दिन पहले रोक की आशंकाएं जताई जा रही थी। सफाई आई निर्वाचन अधिकारी हरफूल सिंह यादव की ओर से। इस सफाई में महापौर पद की लॉटरी में सब कुछ नियमानुसार होने और अधिकृत घोषणा के बगैर खबरें नहीं चलाने का आग्रह टीवी न्यूज चैनलों से किया गया था। इस स्पष्टीकरण या सफाई की जरूरत महसूस क्यों की गई। किसने हरफूल सिंह यादव को ऐसी सलाहें दीं कि वे सफाई दें ? कौन था जिसने उन्हें जनता के सामने सफाई पेश करने को मजबूर किया। अगर यादव ने पदीय हैसियत में कर्त्तव्यों सही पालन किया है और सब कुछ सही किया है तो उन्हें सफाई देने की जरूरत ही कहां है ? उच्चाधिकारियों को सफाई या स्पष्टीकरण समझ में आता है परंतु आम जनता के सामने सफाई! आज तक किसी अफसर ने ऐसा किया हो याद नहीं आता। यादव से पहले भी निर्वाचन अधिकारी हुए हैं और उनसे पहले भी लॉटरियां निकाली गई है। फिर इस बार ही ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि सब कुछ की वीडियोग्राफी करवाने के सबूत होने का सहारा लिया गया। अगर उन्हें ऐसा लग रहा था कि जनता में अफवाहें फैल रही थी तरह-तरह की बातें हो रही थी इसलिए ऐसा किया गया तो ऐसे में जनता को संदेश देने के लिए क्या यह उचित नहीं होता कि यादव एक पत्रकार वार्ता आयोजित करते जिसमें जो कुछ कहना था, कहते। सवालों के जवाब भी देते और जिस वीडियोग्राफी की बात वे बार-बार कह रहे हैं उस वीडियो क्लिप को ना केवल दिखाते बल्कि सभी इलेक्ट्रॉनिक चैनल को उपलब्ध करवा देते। यूं आजकल तो हर मुटठी में ऐसे इंतजाम हैं कि ऑडियो रिकॉर्डिंग भी पोस्ट की और सुनी-सुनाई जाती है। अगर वास्तव में उन्हें जरूरत महसूस हो रही थी तो ऐसा करना शायद ज्यादा उचित रहता। स्थानीय, प्रादेशिक और राष्ट्रीय न्यूज चैनल के जरिए सारी जनता देख-सुन लेती! लोग कम से कम चोर की दाढी में तिनका जैसे रटे रटाए मुहावरे तो नहीं कहते। जनता अब भी विश्वास करने को तैयार नहीं है कि सूचना के अधिकार को ठंेगा दिखाने या मौन साधने की नीति बरतने वाला प्रशासन पारदर्शिता का पैरोकार बनते हुए अपनी पीठ आप थपथपाएगा। हकीकत क्या है, आप ही जानें ? अपन तो इतना जानते हैं कि द्वापर युग में महाभारत रचने वाले कृष्ण भी यदुवंशी थे और कलयुग में संवत 2072 के श्रावण मास की शुक्ल छठमी को अजमेर में महाभारत रचनेे वाले हरफूल सिंह भी यदुवंशी ही हैं। इस महाभारत के भी दूरगामी परिणामों की आशंकाएं अभी से जताई जा रही हैं। हे तात तुम्हें प्रणाम !
– राजेन्द्र हाड़ा 9829270160

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