एक धूर्त और एक देवता डॉक्टर की कहानी. . .
अजमेर मेडिकल कॉलेज के राजनीतिकरण का जब भी इतिहास और ज्योग्राफी लिखी जाएगी तब डॉ. गोयल पर लिखा अध्याय अशोका दी ग्रेट या बादशाह अकबर के बराबर लंबाई तथा महत्व होगा- यह निर्विवाद है। कि इससे बड़ा कोई नहीं। वैसे भी पेट का घेरा सभी डॉक्टर्स में सबसे बड़ा है, उनका।
चिकित्सा जैसे पवित्र, दायित्वपूर्ण तथा कठिन क्षेत्र में भी, भारतीय सड़क-छाप राजनीति तथा मीडिलची(मध्यस्थ नेता) नेताओं को लाकर, पूज कर डॉ. गोयल ने मेडिकल शिक्षा को सुगम, सरल व दस दिन में पढ़कर पास हो जाने वाले, बदबूदार, घटिया, जोड़ तोड़ से भरे षडय़ंत्रकारी कार्य में बदल दिया।
और यही हाल अच्छे, समर्पित, ईमानदार, बुद्धिमान, व मेहनती डॉक्टर्स को हॉस्पिटल से हटाना उनका मुख्य कार्य था। ऐसे डॉक्टर जिन्हें मरीज व बुजुर्ग पेंशनर्स भगवान तुल्य मानते हैं उनमें से एक है, डॉ. माथुर। बेचारे डॉ. माथुर दिन-रात अपने मरीजों के लिए समर्पित रहने के बावजूद स्थानांतरण कर दिए जाते हैं वो भी ‘मोबाइल सर्जिकल यूनिट’ में। हद है बदमाशी की।
डॉ. माथुर दिन-रात मरीजों की सेवा में लगे रहते। उन्हें प्रोत्साहन के बदले ट्रांसफर का तोहफा दिया जाता क्योंकि राजनीति में चमचागिरी का बड़ा महत्व है।
डॉ. गोयल सरीखे करेक्टर अभी वर्तमान में इसी अस्पताल में एक और है। खैर साहब डॉ. गोयल के आगे कोई नहीं।
डॉ. गोयल की तुलना हम आलू से भी कर सकते हैं। आलू एक ऐसी सब्जी है जिसे आप कहीं भी डाल सकते हो, चाहे दाल में डालों, चाहे किसी सब्जी में और तो और मीट में डालोगे तो स्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ठीक ऐसा ही चरित्र है, हमारे डॉ. गोयल का। ये हमेशा राजनेताआओं के तलवे चाटते रहे हैं। इनकी रानीतिक पार्टी का नाम है, ‘आर.पी.आई.'(रूलिंग पार्टी ऑफ इंडिया)। अब चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, कोई फर्क नहीं अलबत्ता। शहर में कोई मंत्री हो तो मंत्रीजी की सेवा वरना विधायक जिंदाबाद। डॉ. साहब सुबह सोते को उठाने से लेकर रात को सुलाने तक व्यस्त रहहते थे। केवल इसीलिए की उनका ट्रांसफर न हो जाए। इसके लिए षडय़ंत्रकारी राजनीति का खेल खेला जाता और खुद को बचाने के चककर में कई अच्छे, ईमानदार, मेहनती डॉक्टर्स को इस गंदे खेल का शिकार बनना पड़ता है और भुगतते मरीज।
ऐसे गंदे डॉक्टर्स के कारण हरामखोरों, बेईमानों तथा कमीनों के दिन आ जाते है। जहां राजनीतिकरण के कारण ऐसे कुछ डॉक्टर्स बिकाऊ और मरीज जानवर और मेहनतकश डॉक्टर्स बेमतलब हो जाते हैं।
ऐसे हालात में मरीज को बिस्तर दिलवाने से लेकर एनिमा लगवाने जैसे कामों के लिए सिफारिश या पैसा देना पड़ता है।
ये कहानी सौ प्रतिशत सत्य पर आधारित है।
पात्रों के नाम काल्पनिक है और ये कुछ समय पूर्व का वाक्या है मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े लोग दोनों को पहचान गए होंगे।
राजीव शर्मा, शास्त्री नगर,अजमेर
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