क्यों है हम पर अफसरशाही हावी

अनिल पाराशर
अनिल पाराशर
हिन्दुओ की सबसे बड़ा तीर्थ स्थल पुष्कर में मिनी मेले के नाम से मशूहर भादवा का मेले को शुरू हुए एक सप्ताह से अधिक समय बीत चूका हे और मेले में प्रशासन ने किस तरह की व्यवस्था कर रखी हे यह सब आप लोगो से कुछ नही छिपा हे। प्रतिदिन गरीब तबके के हजारो रामदेवरा के पैदल जातरू आ रहे हे उसके बावजूद हमारे विधायक सांसद जनप्रतिनिधि विभिन्न संगठन और प्रशासन कितना सक्रिय हे यंहा की व्यवस्थाओ को देखकर की हम अनुमान लगा सकते हे कस्बे में चारो तरफ आवारा जानवरों का जमावड़ा हो रखा हे लाइटो की आँख मिचोली चल रही हे तो सड़के टूट रखी हे गंदगी के बीच जातरु रात गुजार रहे हे इन सब को देखकर लगता हे की पुष्कर का कोई धणी धोरी न हो आज स्थिति यह हो रखी हे की हमे हमारे छोटे मोटे कामो के लिए अजमेर के धोक लगाने पड़ रहे हे प्रशासन तो इस तरह हावी हो रखा हे की जेसे पुष्कर तो उनके क्षेत्र में आता ही नही हो कोई भी काम हो हमे उनके दरवाजे पर जाना पड़ता हे हम लोगो में इतनी भी ताकत नही हे की हम प्रशासन को पुष्कर बुला सके इसका भी एक कारण हे हमारे कुछ स्वार्थी और चापलूस भाई जो अपने स्वार्थ के कारण प्रशासन के इर्द गिर्द घूमकर इनकी चापलूसी और गुलामी करना जिसके कारण हम इनका बाल भी बांका नही कर सकते और यह दिन बे दिन हम पर हावी होते जा रहे हे और पुष्कर की दुर्दशा होती जा रही हे सबसे आश्चर्य की बात तो यह हे की हमारे ख्याति प्राप्त पुष्कर मेले में भी हमारे विभिन्न संघठन और जनप्रतिनिधियो को भी कोई महत्व नही दिया जाता और अजमेर में अपने कार्यालयों में ही बेठे बेठे कागजो में बैठक कर व्यवस्थाओ को अंजाम दे देते हे।क्या हमारा स्तर इतना निचे गिर गया हे की हम अपनी ही छोटी मोटी मुलभुत समस्याओ के लिए प्रशासन के कार्यालयो के चक्कर काटने पड़ रहे हे क्या हम लोगो में वो शक्ति नही रही की हम प्रशासन को पुष्कर आने पर विवश कर सके ।कब खत्म होगी गुलामी और जी हजुरी।जरा सोचो और समझो की क्यों प्रशासन हम पर हावी हो रहा हे ।कोरे पद लेने और संघठन बनाने से काम नही चलता छोटे मोटे काम करवा के छपास के रोगी मत बनो पुष्कर हमारा हे इसकी मुलभुत समस्याओ को दूर करने का पुष्कर के हर व्यक्ति का फर्ज और दायित्व होता हे। इसलिए एकजुट और संघटित होकर कार्य करे न की एक दुसरे की टांग खिंचाई करे किसी न सही कहा हे की घर में दो लोगो की लड़ाई में कोई तीसरा ही फायदा उठा जाता हे ।
अनिल पाराशर संपादक बदलता पुष्कर।

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