राजस्थान सरकार और पुलिस को याद आया पुलिस का खुफिया तंत्र

राजेश टंडन
राजेश टंडन
कुख्यात आनन्दपाल सिंह की फरारी के बाद पुलिस को बीट प्रणाली और खुफिया तंत्र याद आ रहा है। विगत दिनों माननीया मुख्यमंत्री जी ने कलेक्टर एस.पी. कॉन्फ्रेन्स राजस्थान स्तर की करी थी उसमें श्रीमान् उत्कल रंजन साहू साहब, एडीशनल डी.जी.पी. (इंटेलीजेन्स) को बुलाया तक ही नहीं गया था उस कॉन्फै्रन्स में किसको बुलाना है किसको नहीं बुलाना यह काम सी.एम.ओ. देख रहा था और सी.एम.ओ. में बैठे लोग इस बात से सदा आशंकित रहते हैं कि अगर इंटेलीजेंस वालों को मीटिंगों में बुला लिया तो हमारी पोल खुल जायेगी इसलिये वो ऐसे पुलिस के कुछ विभागों को बुलाते ही नहीं हैं कि ‘‘ना बाबाजी आवे, नो घण्टा बाजे‘‘। अब के बार वसु मैडम कार्यकाल में सी.एम.ओ. इतना हावी हो गया है कि पुलिस मुख्यालय की कोई रेलेवेन्सी (संबद्धता) ही नहीं रही। पी.एच.क्यू. अपने स्वविवेक से डिप्टी एस.पी. तक की ना तो पोस्टिंग कर सकता है ना ही ट्रांसफर कर सकता है एस.पी. और आई.जी. की तो सोचना ही दूर की बात है छः-छः महीने बीत जाने के बाद भी पुलिस के प्रमोशन होने के बाद भी ट्रान्सफर लिस्ट निकली ही नहीं, डिप्टी एस.पी.यों और एडीशनल एस.पी.यो की ट्रांसफर लिस्ट अभी भी डीप फ्रीजर में पड़ी है सी.एम.ओ. का इतना दखल बढ़ गया है कि मंत्री लाचार और असहाय से नजर आते हैं मुख्य सचिव महोदय खुद फाईल लेकर सी.एम.ओ. चले जाते हैं और वहां बैठे अधिकारीयों की फरमादारी और तिमारदारी करते नजर आते हैं तो गृह सचिव की जो स्थिति होगी उसका अंदाजा तो सहज लगाया जा सकता है। गुर्जर आन्दोलन के पटाक्षेप में भी पुलिस मुख्यालय का कोई रोल नहीं था, कोई अधिकारी वार्ता में नहीं था, पुलिस मुख्यालय और शासन सचिवालय के अधिकारी तो इस राज में ऐसे हो गये हैं जैसे देहाड़ी मजदूर (डेली वेजस वाले) होते हैं। पुलिस मुख्यालय से ज्यादा तो जयपुर पुलिस कमिश्नरेट पॉवरफुल है। ऐसे में कानून व्यवस्था कैसे कायम रहे, यह चिन्ता का विषय है ?
आनन्दपाल सिंह की फरारी ने राजस्थान को झकझोर के रख दिया, हाई अलर्ट जारी कर दिया गया और कई स्तरों पर जांचे शुरू हो गईं, मॉकड्रिल, जंकी ड्रिल और मंकी ड्रिल कई तरह की ड्रामेबाजीयां देखने को मिल रही हैं इन सबके बावजूद भी आनन्दपाल गिरोह का एक गुर्गा, दो बाल अपचारीयों सहित रविवार रात गार्ड को कमरे में बन्द कर सीकर से फरार हो गया जिनका अब तक कोई सुराग नहीं लगा है कहां गई नाकेबन्दी ? कहां गई हाई अलर्ट ? फिल्मी अन्दाज में सारी ड्रामेबाजी हो रही है, राजस्थान पुलिस जातीय संघर्ष में लिप्त है, अधिकारी एक-दूसरे को नीचा दिखाने और असक्षम दिखाने पर तुले हुए हैं नये से नये स्वांग भर रहे हैं मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं यह सब क्या हो रहा है ? राजस्थान सरकार में ऐसा लग रहा है जैसे ‘‘रोम जल रहा है और नीरो बांसुरी बजा रहा है‘‘ जो तफ्तीश आनन्दपाल की फरारी की क्राईम ब्रान्च को करनी चाहिये थी वो आतंकवादी विभाग (ए.टी.एस.) कर रहा है। मंत्री जेलों में जाकर अपराधियों से मिल रहे हैं और गृहमंत्री कटारिया जी कह रहे हैं कि अपराधी आनन्दपाल सिंह क्या घर में बैठा है जो उसे पकड़ लाऊं ? मेरे पास क्या जादू का डण्डा थोड़े ही है तो महाराज कटारिया जी पंचायती राज ही चलाते ना गृहमंत्री क्यों बन गये। माननीया वसुन्धरा जी की योग्यता और कार्यकुशलता पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं है पर लगता ऐसा है कि उन तक हकीकत पंहुच ही नहीं पा रही है और उन्हें सत्य से अवगत ही नहीं कराया जा रहा है और कुछ चन्द स्वार्थी तत्वों ने उन्हें गुमराह किया हुआ है।
राजेश टण्डन, वकील, अजमेर।

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