सोमवार को आयुक्त मुरारीलाल वर्मा के नेतृत्व में मेला समिति की मीटिंग हुई थी। जिसमें समिति के 7 सदस्यों में से 6 सदस्यों ने आशा टेंट हाऊस को कार्ड का प्रायोजक बनाने पर सहमति जता दी। मंगलवार सुबह सभापति बबीता चौहान के नेतृत्व में हुई बैठक में सोमवार को हुई बैठक की प्रोसेडिंग रिपोर्ट पढ़कर सुनाई गई। इसमें कार्ड प्रायोजक के लिए सहमति की लाइन गायब होने पर कांग्रेसी पार्षद निशा डांगरा ने सभापति और आयुक्त के समक्ष नाराजगी जाहिर की। पार्षद का कहना था कि समिति सदस्यों द्वारा सहमति से प्रस्ताव पारित कर दिया। इसके बावजूद उस प्रस्ताव में परिवर्तन कर मनमानी की जा रही है। अगर यही सब करना था, तो हमें समिति सदस्य क्यों बनाया? आप दोनों ही मेला भरवा लो। हमारी क्या जरूरत है। जवाब में सभापति ने परिषद प्रशासन के खर्च पर कार्ड छपवाने की बात कही तो मामला गर्मा गया। समिति सदस्यों के बीच आकर प्रतिपक्ष नेता विजेन्द्र प्रजापति, दलपत मेवाड़ा व ज्ञानदेव ज्ञंवर ने सभापति को जमकर खरी-खोटी सुनाई और नियमों का हवाला देते हुए पद का दुरूपयोग करने की बात कही। मामला बढ़ता देख सभापति, आयुक्त व मेला संयोजक विनोद खाटवा बैठक छोड़कर चल दिए। तीनों ने मिलकर करीब 20 मिनट तक बंद कमरे में गुप्त मंत्रणा की। इस बीच भाजपा महामंत्री रमेश बंसल ने परिषद में प्रवेश किया और सभापति से बात कर कार्ड का प्रायोजक आशा टेंट हाऊस को बनाने पर जोर दिया। सभापति के सहमति जताने पर मामला शांत हुआ। कार्ड के प्रायोजक को लेकर हुई राजनीति के बाद पार्षद मेवाड़ा का कहना था कि कार्ड पर राजनीति करने से परिषद की मानसिकता का पता चलता है। मैं नाम का शौक नहीं रखता। सिर्फ नियमों की बात करता हूं। कार्ड भले परिषद अपने स्तर पर छपवा ले, मुझे तो बता देना कि इतने रुपए लगे हैं, मैं भुगतान कर दूंगा। कार्ड की इस राजनीति से लगता है कि आने वाले दिनों में अन्य गतिविधियों के प्रायोजकों को लेकर भी विवाद संभव है। अगर यही आलम रहा तो इसका असर भविष्य की राजनीति में दिख सकता है।
-अमित सारस्वत, जर्नलिस्ट, ब्यावर

Right bosss…..bahoot khub likha h aap ne ….or us pr mewada ji ka jo coment aaya h……bahoot khub