अजमेर के एसपी नितिन दीप ब्लग्गन को ट्रेफिक जाम में फंसने की सलाह मैं इसलिए दे रहा हंू, क्योंकि पिछले दिनों ब्लग्गन ने शहर के प्रमुख बाजारों का पैदल चलकर जायजा लिया। तब ब्लग्गन ने कहा कि वे समस्याओं को स्वयं समझना चाहते हैं, ताकि समाधान कर सके। ब्लग्गन ने कोई एक माह पहले ही अजमेर में एसपी का पद संभाला है। आमतौर पर यही धारणा है कि नया अफसर शुरू में ज्यादा ही भागदौड़ करता है। चूंकि अभी एसपी ब्लग्गन का भागदौड़ वाला दौर ही चल रहा है, इसलिए मेरा सुझाव है कि ब्लग्गन एक बार ट्रेफिक जाम में फंसकर आम व्यक्ति की पीड़ा का अहसास करें। जाम में फंसने के लिए ब्लग्गन को किसी खास मौके अथवा विपरीत परिस्थितियों का इंतजार करने की जरुरत नहीं है। ब्लग्गन दिन में किसी भी समय गांधी भवन, आगरा गेट और महावीर सर्किल के चौराहों पर आकर खड़े हो जाएं, तो अपने आप जाम में फंस जाएंगे। ये तीनों चौराहे शहर के प्रमुख चौराहे हैं और जब इन चौराहों पर जाम लगता है तो आस-पास के क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं। कल्पना कीजिए किसी मरीज को जवाहर लाल नेहरू अस्पताल जाना है और वह गांधी भवन के चौराहे पर जाम में फंसा हुआ है, एम्बुलैंस अपना होर्न भी बजा रही है, लेकिन हालात इतने खराब है कि जाम में साइकिल सवार भी नहीं निकल सकता है। यदि किसी तरह एम्बुलैंस ने गांधी भवन का चौराहा पार कर भी लिया तो उसे आगरा गेट और महावीर सॢकल पर भी लम्बा इंतजार करना पड़ेगा। सवाल मरीज और एम्बुलैंस का ही नहीं है। कई बार आम व्यक्ति को भी बेहद जरूरी कार्य होता है। समय पर नहीं पहुंचने की वजह से भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। यदि एसपी ब्लग्गन को वाकई अजमेर के जाम की समस्या को देखना है तो उन्हें पुलिस की कार का त्याग कर चुपचाप किसी निजी कार में फंसना पड़ेगा। ब्लग्गन यह भी देखे कि उनकी ट्रेफिक पुलिस करती क्या है। पहली बात तो जाम के काफी देर बाद पुलिस कर्मी मौके पर आते हैं और फिर जो व्यवस्था करते हैं वो इतनी लचर होती है कि जाम दो घंटे पहले खुल ही नहीं पाता। 14 दिसम्बर को दोपहर एक बजे महावीर सर्किल पर जो जाम लगा तो आगरा गेट और गांधी भवन चौराहे के साथ-साथ सभी भीड़ वाले बाजार जाम हो गए। कोई दो घंटे तक अफरा-तफरी मची रही। पता नहीं एसपी ब्लग्गन को 14 दिसम्बर के जाम के बारे में पता चला या नहीं।
14 दिसम्बर को दोपहर एक बजे न तो कोई जुलूस निकल रहा था और न ही किसी बारात में युवा नाच रहे थे। सामान्य यातायात की वजह से ही जाम हो गया। ब्लग्गन माने या नहीं, लेकिन शहर के आम व्यक्ति की यह धारणा है कि अजमेर में ट्रेफिक पुलिस तो है ही नहीं। चौराहों पर ट्रेफिक पुलिस के जो जवान नजर आते हैं उनका सारा ध्यान बाहर से आने वाले वाहनों और बिना हेलमेट वाले वाहनों के चालकों पर लगा रहता है। सिटी बस, टैम्पो, ऑटो रिक्शा आदि के खिलाफ तो वैसे भी कोई कार्यवाही नहीं होती, क्योंकि ऐसे वाहनों पर बबलू, फजलू, कालू आदि के स्टीगर लगे होते है। प्रत्येक स्टीगर का हिसाब माह के अंत में हो जाता है। यही वजह है कि नगरीय सेवा के ऐसे वाहन जहां चाहे वहां खड़े होते है और जब चाहे तब चलते हैं। चौराहों पर लगी ट्रेफिक लाइटों का होना और न होना बराबर है।
(एस.पी. मित्तल)
(spmittal.blogspot.in) M-09829071511